इस देश में दूसरों के गर्म तवे पर अपनी रोटी सेंकने वाले सेंकैया जमात के लोग बहुतायत में हैं, इफ़रात हैं। 'गझिन' इतने, कि कहीं से भी आती रोशनी को अपने तक ही रोक लें, समाहित कर लें। एक तरह से इन्हें जीते जागते 'ब्लैक होल' कहा जा सकता हैं। अब ताजा प्रकरण विभिन्न दलों के राजनेताओं द्वारा किये जाने वाले उपवास (?) कार्यक्रमों का है। वे भी अन्ना की राह पर उपवास करने जा रहे हैं, लोगों से विश्वास अर्जित करना चाहते है। उपवास, जिसकी राह चलकर अन्ना ने एक सशक्त आंदोलन खड़ा किया, जनता का अपने उपर विश्वास हासिल किया और लोगों में उम्मीद की एक किरण जगाई। अब उसी किरण से उपजे प्रकाश को सोखने विभिन्न राजनीतिक दल अपने अपने दल बल के साथ जुट गये हैं।
सुन रहा हूं कि गुजरात के मुख्यमंत्री उपवास करने जा रहे हैं। जनता को अपने मन की स्वच्छता से परिचित कराना चाहते हैं। उधर गुजरात में विपक्षी कांग्रेस भला क्यों चुप रहती। उसने भी अपनी ओर से उपवास पुरूष खोजा और शंकर सिंह वाघेला को आगे कर दिया। अब वो भी उपवास करेंगे। जनमत को अपने स्तर पर प्रभावित करेंगे।
खैर, वे सब राजनेता हैं, उन्हें हर मुद्दे का तोड़ रखना पड़ता है, हर माहौल के हिसाब से ढलना-चलना पड़ता है। लोग समझ भी रहे हैं इन राजनीतिक उपवासों की हकीकत, मंद मंद मुस्करा भी रहे हैं लेकिन वही बात कि किया भी क्या जा सकता है, जैसे और नौटंकीयां देखते रहे हैं, यह भी देख लें। उधर लालकृष्ण आडवाणी को अपनी भूली बिसरी रथयात्रा याद आ गई है। वैसे भी वे ज्यादातर भूले बिसरे भूतकाल अंदाज में सबके सामने आते हैं....मैं जब पाकिस्तान गया था....मैं जब बाजपेई जी से मिला था.... तो उन्होंने कहा था.....जब जसवंत आतंकवादी लेकर एक्सचेंज करने गये थे ....तो मुझे नहीं पता था...था...था .....। हद है राजनीतिक तकधिनवा की। सुना है वे भी भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी रथयात्रा निकालना चाहते हैं। देश में अलख जगाना चाहते हैं। पता नहीं वो अपनी रथयात्रा में कर्नाटक रखेंगे या नहीं, वो खदानें रास्ते में आएंगी या नहीं जिनपर रेड्डी बंधुओं ने कब्जा जमाया था या ऐसे ही रथ को सरपट हाइवे से निकाल ले जायेंगे।
खैर, इतना जरूर है कि इस उपवासी राजनीति, रथयात्रा, क्रांग्रेस और विभिन्न पार्टियों के अल्लम-गल्लमादि से अन्ना के आंदोलन और उससे जुड़े प्रतीकों पर कहीं न चोट पहुंच रही है। जिस अंदाज में अन्ना ने अपने उपवास/अनशन के प्रति अलग तरह की भावना से लोगों को परिचित कराया वह भावना कहीं न कहीं आहत होती लगती है। बहुत संभव है यह 'खेल-प्रतिखेल' ज्यादा चला तो लोग उपवास आदि पर वह दृढ़ता, वह विश्वास आगे से न जता पायें जैसा कि अभी अन्ना आंदोलन के दौरान जताया। ऐसे में जरूरत है ऐसे छद्म उपवासों वाले 'राजनीतिक सेंकैयों' से सावधान रहने की, उनकी दूषित मनोवृत्तियों, निहित स्वार्थों से दूरी बनाये रखने की ताकि वास्तविक आंदोलनों की शुचिता और विश्वास पर आँच न आये।
- सतीश पंचम
सुन रहा हूं कि गुजरात के मुख्यमंत्री उपवास करने जा रहे हैं। जनता को अपने मन की स्वच्छता से परिचित कराना चाहते हैं। उधर गुजरात में विपक्षी कांग्रेस भला क्यों चुप रहती। उसने भी अपनी ओर से उपवास पुरूष खोजा और शंकर सिंह वाघेला को आगे कर दिया। अब वो भी उपवास करेंगे। जनमत को अपने स्तर पर प्रभावित करेंगे।
खैर, वे सब राजनेता हैं, उन्हें हर मुद्दे का तोड़ रखना पड़ता है, हर माहौल के हिसाब से ढलना-चलना पड़ता है। लोग समझ भी रहे हैं इन राजनीतिक उपवासों की हकीकत, मंद मंद मुस्करा भी रहे हैं लेकिन वही बात कि किया भी क्या जा सकता है, जैसे और नौटंकीयां देखते रहे हैं, यह भी देख लें। उधर लालकृष्ण आडवाणी को अपनी भूली बिसरी रथयात्रा याद आ गई है। वैसे भी वे ज्यादातर भूले बिसरे भूतकाल अंदाज में सबके सामने आते हैं....मैं जब पाकिस्तान गया था....मैं जब बाजपेई जी से मिला था.... तो उन्होंने कहा था.....जब जसवंत आतंकवादी लेकर एक्सचेंज करने गये थे ....तो मुझे नहीं पता था...था...था .....। हद है राजनीतिक तकधिनवा की। सुना है वे भी भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी रथयात्रा निकालना चाहते हैं। देश में अलख जगाना चाहते हैं। पता नहीं वो अपनी रथयात्रा में कर्नाटक रखेंगे या नहीं, वो खदानें रास्ते में आएंगी या नहीं जिनपर रेड्डी बंधुओं ने कब्जा जमाया था या ऐसे ही रथ को सरपट हाइवे से निकाल ले जायेंगे।
खैर, इतना जरूर है कि इस उपवासी राजनीति, रथयात्रा, क्रांग्रेस और विभिन्न पार्टियों के अल्लम-गल्लमादि से अन्ना के आंदोलन और उससे जुड़े प्रतीकों पर कहीं न चोट पहुंच रही है। जिस अंदाज में अन्ना ने अपने उपवास/अनशन के प्रति अलग तरह की भावना से लोगों को परिचित कराया वह भावना कहीं न कहीं आहत होती लगती है। बहुत संभव है यह 'खेल-प्रतिखेल' ज्यादा चला तो लोग उपवास आदि पर वह दृढ़ता, वह विश्वास आगे से न जता पायें जैसा कि अभी अन्ना आंदोलन के दौरान जताया। ऐसे में जरूरत है ऐसे छद्म उपवासों वाले 'राजनीतिक सेंकैयों' से सावधान रहने की, उनकी दूषित मनोवृत्तियों, निहित स्वार्थों से दूरी बनाये रखने की ताकि वास्तविक आंदोलनों की शुचिता और विश्वास पर आँच न आये।
- सतीश पंचम
8 comments:
बड़ी भीड़ है इनकी सतीश पंचम जी - इससे दूर जाइएगा तो अपने आप ही उसके पास हो जाइएगा - इनसे दूर रहने की सलाह तो आपकी मानना चाहते हैं सभी - पर जाएँ कहाँ ? सब ओर तो इन्ही "सेंकैया" जमात वालों का बोलबाला है ...
उन्हें लग रहा होगा कि उपवास से वोट मिलेगा:)
मरम न कोई जाना।
वो तो शुक्र रहा कि शंकर बघेला ने अन्ना से मुकाबला नहीं किया।
कोशिश करके देख लें..अन्ना जैसी सच्चरित्रता ..दृढ़ता कहाँ से लायेंगे
हर तरफ "सेंकैया" जमात वालों का ही बोलबाला है|
अब उपवास आगे की राजनीति में निर्णायक मोड़ होने वाला है?
दुआ करें कि आत्मिक शुद्वता का यह उपकरण कहीं अवसरवादिता का खिलौना न बन जाये।
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