
एक समय था कि भारत में स्मगलर शब्द बहुत प्रचलित था। आम बोलचाल में भी लोग एक दूसरे को स्मगलर तक कह डालते थे…..कोई कहता कि अरे उसकी क्या कहते हो….वह तो स्मगलर ठहरा…..आर पार करके ही तो इतना बड़ा मकान बना लिया है ……ये कर लिया वो कर लिया। कहीं कुछ अनोखी या विदेशी टाइप चीज देख लेते तो तड़ से कहते स्मगलिंग का माल है। दूकानदार भी अपनी चीजों के दाम बढ़ाने के लिए पास आकर कान में मंत्र कह देते थे कि….साहब स्मगल का माल है….आसपास की दुकानों में मिलेगा भी नहीं। यह स्मगल शब्द का ही चमत्कार होता था कि खरीददार एक नजर आस पास मारता और धीरे से कहता……गुरू बड़े पहुँचे हुए हो ..इसीलिए तो मैं और दुकाने छोड़ तुम्हारी ओर स्मगल माल के लिए लपका आता हूँ। अब देखता हूँ कि यह स्मगल शब्द लुप्तप्राय शब्दों की लिस्ट में आ गया है ठीक वैसे ही जैसे कि गिद्ध आ गये हैं लुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में।

यह बात सुनकर पिलपिले मुँह वाले एक और बुढ़ऊ नेता जिनके कि खुद के सात- आठ बच्चे थे…. ने कहा…..सीमित संसाधनों के चलते जनसंख्या को सीमित करने का काम गर्भ निरोधक चीजें जैसे कि कंडोम आदि का होता है और वह काम अगर हमें करना पड़े तो इससे बढ़कर लानत की बात और कोई नहीं हो सकती।
बुढ़ऊ नेता जी का इतना कहना था कि कई समर्थक उनके एकदम गदगद हो गए....क्या बात कही है दादा ने......एकदम पते की बात। उधर विरोधी गुट जो कि पिछले अध्यक्षीय चुनाव में बुढ़ऊ के गुट से मात खा चुका था वह भी ताव में आ गया कि बुढ़ऊ ने हमें कंडोंम की उपमा कैसे दी......हम क्या जनसंख्या नियंत्रण वाले लोग हैं...... हंगामा बढ़ता गया…….एक दूसरे को कंडोम……पतवार …….आदि न जाने क्या क्या कहा जाने लगा …..…और देखते ही देखते कुर्सीयां तोड़ी जाने लगी......खट्......खुट्.....पट्ट......पुट्टटट....जाहिर है गिद्ध जाँच समिति गिद्धाचार्यों की भेंट चढ़ गई ।

- सतीश पंचम
स्थान – वही, जहाँ पर गिद्ध अब पारसीयों के Tower of Silence से भी पलायन कर गए हैं।
समय – वही, जब एक गिद्ध शहर की ओर लौटने को हो और दूसरा कहे…..ठहरो…..वहाँ अब tower ही tower हैं…..किस पर बैठोगे तय करो।
( चित्र - साभार नेट से)
12 comments:
गिद्धीय पोस्ट हो गयी यह :)
गिद्धशास्त्रियों को मिले तो बात बनें...
एक ही पोस्ट में कइयों को लपेट लिया? वाकयी स्मगल शब्द अब अपना वजूद खो चुका है।
उम्दा विचार सही में इंसान अपने स्वार्थ और जीने की मजबूरी तथा सरकार में बैठे भ्रष्टाचारियों की वजह से इंसानियत को बेचकर गिद्ध बनता जा रहा है ...
वाह साहब गिद्धों को राजनिति से स्मगल ब्लोगजगत में
ले आय।
सचोट व्यंग्य
सही कहा ! नेता तो गिद्ध से भी बढकर हैं... जीते जी नोच-नोचकर खाते हैं. राजनीतिज्ञों की खूब खबर लेते हैं आप.
very minute observation . no reason to differ ! great !
गिद्ध कैसे रह सकते हैं भाई। कभी भविष्य में जीवितों का माँस उड़ाने लगें तो कम्पटीशन हो जायेगा।
gajab
gajab
विषय का चुनाव अच्छा है लेकिन पूरा मजा नहीं आया ..कइयों को लपेटने के चक्कर में मामला उलझ गया. यह पंक्ति जोरदार है...
जब एक गिद्ध शहर की ओर लौटने को हो और दूसरा कहे…..ठहरो…..वहाँ अब tower ही tower हैं…..किस पर बैठोगे तय करो।
गिद्धों ने तो पार्लियामेन्ट और विधान-सभाओं की राह पकड़ ली ।
गिद्धाचार्यों नें प्रसाशनिक पद हथिया लिये, जहाँ से वह निरक्षर गिद्धों को दिशानिर्देश देते रहते आये हैं ।
बकिया इस पोस्ट की राजी खुशी बेचैन आत्मा की टिप्पणी से जानियेगा ।
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