गाँव की पगडंडियों के बीच से चला जा रहा हूँ...........पूरूआ बयार चल रही है...... आम के पेड़ झूम रहे हैं...... अमराई की महक उठ रही हैं......ऐसे में नजर जाती है मौर छुड़ाने जा रही है महिलाओं के झुंड पर.....मौर छुड़ाई....विवाह बाद की एक रस्म।
गीत सुन रहा हूँ......
अमवा की डार पतरानी
सुगन फिर आवा त जानी...
मन हिलोर गीत की पंक्तियाँ सुन एक तरह का सूकून पाता हूँ......मन ही मन दोहराता हूँ....क्या गाया जा रहा है..........सुगन फिर आना तो जानूं.....वाह ....कितनी सुंदर पंक्तियाँ हैं ।
अमवा की डार पतरानी
सुगन फिर आवा त जानीं
उड़ी के सुगन हमरी मंगीया पर बैठा
लै गया टीकवा निसानी
सुगन फिर आवा त जानी
अमवा की डार........
गीत सुनते हुए सूप में रखे मौर के हिस्से पर नजर पड़ती है........कितना तो सुंदर होता है मौर......सफेद ....पीले चमकते लट्टूओं से सजा मौर......विवाह के बाद उसी मौर के एक छोटे हिस्से को लेकर....एक सूप में रख आगे आगे दूल्हा.....पीछे पीछे महिलाओं की गवाई.......कितना मोहक दृश्य है वो.....।
उड़ी के सुगन मोरे कमर पर बैठा
लै गया करधन निसानी
सुगन फिर आवा त जानी
अमवा की डार पतरानी.......
दूल्हे के सिर पर सजे मौर का भी एक जीवनकाल .....मौर सिर पर बाँध जब दूल्हा मंडप में खड़ा होता है तो लोग मंड़वा नापने लगते हैं..... मन ही मन................याद आता है बगल के गाँव की शादी......दूल्हा लंबा तंबा है इसलिए मौर की उंचाई और दूल्हे की उंचाई जोड़कर मड़वे की उंचाई ज्यादा रखी गई थी.......इतनी.... कि... विवाह बाद जब लकड़ी के बने सुग्गे की लूट ( एक रस्म) हुई तब ज्यादा सुग्गे लूटने की होड़ में.... कितनों के तो हाथों पर मड़वे में लगे सरपत ने अपनी धारदार निशानी छोड़ दी थी..........लकड़ी के सुग्गे .....माने ....लकड़ी के बने तोतों का सेट - देखें चित्र। इन लकड़ी के तोते लूटने मे भी गजब का आनन्द..... लोग हास परिहास से भी नहीं चूकते.......। लड़के वाले इन सुग्गों को लूट कर अपने अपने घर ले जाते हैं......बच्चे अक्सर इस तरह के सुग्गे पा जाने पर मन ही मन मुदित होते हैं......एक निशानी.....सुगन फिर आवा त जानी....... ।
अब जब यह लेख लिखने बैठा हूँ तो मन ही मन सोच रहा हूँ कि क्या कारण है कि गाँव में आम और सुग्गे को साथ-साथ बहुत याद किया जाता है.....महिलाओं के गीत में भी सुगन था....आम की डार थी..........। उधर विवाह हेतु जो कलश सजा था उसमें भी आम की पत्तियाँ सजी थीं....बाँस से सटा कर लकड़ी वाला सुग्गा बाँधा गया था......।
उड़ी के सुगन मोरे गले पर बैठा
लै गया हरवा निसानी
सुगन फिर आवा त जानी
याद आता है कि बचपन में आम के पेड़ के नीचे जा खड़ा होने पर जब कभी कोई आम पक्षीयों द्वारा काट कर गिराया जाता तो लपक कर उसे उठा लेता था......साथीयों ने बताया था .... सुग्गा- कटवा आम यानि कि तोते द्वारा आधा खाया हुआ आम मीठा होता है .......मिठऊ होता है।
पुन: आम और सुग्गे का जोड़......।
पुन: आम और सुग्गे का जोड़......।
सोचता हूँ कि इस गँवई जीवन......आम की मिठास.......और हरे तोतों के बीच जरूर कोई रिश्ता है......तभी तो हर ओर दोनों का संदर्भ साथ साथ ही है......।
उड़ी के सुगन मोरे हाथे पर बैठा
लै गया कंगना निसानी
सुगन फिर आवा त जानी
अमवा की डार पतरानी.....
सुगन फिर आवा त जानी
अहा ग्राम्य गीत.....
अहा ग्राम्य गीत.....
- सतीश पंचम
स्थान - वही, जहाँ पर सुग्गे ( तोते ) यदा कदा दिखते तो हैं पर वह बोलते नहीं......न जाने शहर ने क्या कर दिया है उन पर।
समय - वही, जब एक परदेशी अपनी पत्नी को घर छोड़ शहर चला जा रहा हो और पत्नी कह रही हो -
सुगन फिरि आना....... ।
सुगन फिरि आना....... ।
[ सभी चित्र मेरे निजी कलेक्शन से ........ ग्राम्य सीरीज को समाप्त करने की सोच रहा था लेकिन न जाने कहां से एक एक यादें हिलोर मारने लगती हैं कि ग्राम्य सीरीज आगे ही आगे बढ़ती जा रही है ]
ग्राम्य सीरीज चालू आहे......
18 comments:
पहुंचा दिया आपने अतीत में -कितनी यादें घुमड़ घुमड़ आयी हैं !
बाँस से सटा कर लकड़ी वाला सुग्गा बाँधा गया था......।
सिमटते जा रहे हैं अब तो ये प्रतीक भी फिर भी गावों ने इन्हें सम्भाल रखा है.
एक एक दृश्य साकार हो गये.
हम तो गाँव में ही पहुँच गये थे।
जल्दी ही गाँव जाने की तैयारी करते हैं।
इस अनंत कथा को विश्राम भले करने दें, विराम न लगायें। जिन्होंने ग्रामीण जीवन देखा और जिया है वो तो लाभान्वित होते ही हैं, हम जैसे तन से निपट शहरी लेकिन मन से निपट देहाती कहां पहुंच जाते हैं, हम ही जानते हैं।
आभार
बहुत सुंदर सतीश जी आप ने तो बहुत कुछ याद दिला दिया, सुंदर लगे सभी चित्र भी. धन्यवाद
ये वाला गीत तो नहीं सुना कभी. शादी में गारी पर एक पोस्ट ठेलिए.
आप ग्राम्यसीरिज चलने दीजिये और अन्य लेखो के लिए अलग ब्लाग बना लीजिये |
एक सुझाव है बाकि आपकी मर्जी |
एक ही प्रदेश ,एक ही जिला और एक ही भाषा के लोग तो इसमें अपना आनन्द पाते, है पर हमारे जैसे दूसरे प्रदेशो के लोगो को भी अच्छी जानकारी लोक संस्कृति के बारे जानने पढने को मिलता है |
हम सुग्गे को सुआ कहते है और वैवाहिक गीतों में आम के पेड़ के साथ इसका समिश्रण होता ही है
पाँच बधावा पिया न हो
आवत हम देख्या
अम्बा जो वन की
पिया न हो कोयल बोल्या हो
चलो सुआ चलो सुआ
वीरा घर पावणा |
बहुत अच्छा लगा यह ग्रामीण परिवेश |
शोभना जी,
जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि सुग्गा का मिलता जुलता एक और नाम सुआ है। अच्छा लगा जानकर।
जहां तक दूसरा ब्लॉग बनाने की बात है तो वह काफी मुश्किल लग रहा है मेरे लिए...एक इसी ब्लॉग के लिए समय निकालना मुश्किल हो जाता है....फिर दूसरा ब्लॉग शुरू करने से दो जगह ध्यान बंटने से क्वालिटी कंटेंट ( अगर है तो ) उस पर भी असर पड़ेगा। इसलिए दो की बजाय एक ब्लॉग पर ही जो भी मन का है उसे लिखता रहता हूँ और यह मेरे लिए ज्यादा सुविधाजनक है कि सारे कंटेंट मेरे एक ही ब्लॉग पर हैं...ज्यादा ढूँढना नहीं पड़ता :)
सुझाव के लिए धन्यवाद।
कृपया बताएं कि, यह जो गीत आपने लिखा है वह किस क्षेत्र / भाषा से है ?
वाह-वाह..
दोस्त मजा आ गया
बधाई.
हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -
"हमारीवाणी.कॉम" का घूँघट उठ चूका है और इसके साथ ही अस्थाई feed cluster संकलक को बंद कर दिया गया है. हमारीवाणी.कॉम पर कुछ तकनीकी कार्य अभी भी चल रहे हैं, इसलिए अभी इसके पूरे फीचर्स उपलब्ध नहीं है, आशा है यह भी जल्द पूरे कर लिए जाएँगे.
पिछले 10-12 दिनों से जिन लोगो की ID बनाई गई थी वह अपनी प्रोफाइल में लोगिन कर के संशोधन कर सकते हैं. कुछ प्रोफाइल के फोटो हमारीवाणी टीम ने अपलोड.......
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हमारीवाणी.कॉम
गजबे पोस्ट...
सतीशजी
यह गीत मध्य प्रदेश के निमाड़ जिले में गाया जाता है जिसके अंतर्गत खंडवा (पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की कर्म भूमि और प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार की जन्म भूमि )शहर आता है |
यह निमाड़ी लोक गीत है |
शोभना जी,
दरअसल एकबरगी मुझे यह गीत कुछ कुछ पहाड़ी गीत सा लगा, इसलिए शंका समाधान के लिए पूछ बैठा।
जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
पंचम दा आप बड़े मजबूत कलमकार तो हैं ही साथ ही साथ फोटोग्राफी में भी आप महारत रखते हैं. और क्या कहूँ गुरु एकदम सोलिड हो.
गज़ब पोस्ट है.
विवाह एक बाद अपने यहाँ मौर छोड़ाने जैसी जो रश्में होती हैं उस समय गाये जाने वाले गीत अद्भुत होते हैं. मैलोडी से लेकर जीवन जीने के लिए सीख तक, सबकुछ मिलता है. बहुत बढ़िया पोस्ट.
उड़ी के सुगन मोरे हाथे पर बैठा
लै गया कंगना निसानी
सुगन फिर आवा त जानी
अमवा की डार पतरानी.....
सुगन फिर आवा त जानी
:)
पोस्ट मजेदार है! रोचक च!
वाह सर, उस जीवन को याद दिलाये जिसे याद कर हमेशा गांव लौटने की इच्छा होती है । पर समय का चक्र ऐसे घुमा की सब जगह बाजार हावी हो गया । बहुत मार्मिक और दिल में एक टिंश जगाने वाला लेख लिखे हैं आप । मिठउआ आम ... सुग्गा कटवा आम ! वाह सर , नमन आपको ।
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