जब गर्मी के मौसम में तपिश के साथ पछिवहीं लूची वाली आँच चेहरे पर पड़ती है तो लगता है जैसे चेहरे पर किसी वेल्डिंग नोजल का मुंह खोल दिया गया है। एकदम आग। रस्ता चलना दूभर ....... बाहर निकलने में जैसे पतंग पड़ी है.....और ऐसी ही खड़खड़िया दुपहरी के समय मैं अपने गाँव में जनगणना करने वालों के साथ घूम रहा था।
इतनी गर्मी में बाहर घूमना........कारण....... मेरी ललक......एक आकांक्षा.... कि... अपने गाँव वालों को ठीक से जान लूं.... पहचान लूं । यूँ तो मैं गाँव हर साल जाता हूँ लेकिन केवल राम-रहारी-जैरमी के अलावा मेरा गाँव वालों से कम ही वास्ता पड़ता है। कभी कभार शादी ब्याह पड़ने पर किसी के यहाँ न्योता-हकारी के लिए जरूर चले जाता हूँ लेकिन वह भी बहुत कम.....एक तो जब मैं आता हूं तब विवाह का सीजन या तो बीत चुका होता है या अभी आया ही नहीं होता.....सो जनगणना सर्वे के दौरान गँवई विजिट का यह अच्छा मौका था....सो चल पड़ा , बगल में कैमरा दबाए-दबाए ।
वैसे इस बार जब गाँव गया था तो परिवार को...बच्चों को वापस लाने गया था.....स्कूल खुलने वाले थे । इधर ट्रेन पकड़ने से ठीक एक दिन पहले मैं जनगणना वाले प्रगणकों के साथ घूम रहा था। मन में शंका थी कि कहीं इस दुपहरी में टहलने से बीमार न पड़ जाउं और कल की यात्रा त्रासद न हो जाय और सबसे बढ़ कर कहीं किसी नाड़ाधारी डॉक्टर और गोले वाले डॉक्टर के यहाँ न जाना पड़ जाय। सो लूचही आँच से बचने का पूरा इंतजाम करते हुए सिर पर सफेद गमछा आदि बाँध कर निकला।

यह सब देख कर मैं सोचता हूँ कि हम किस बिना पर अपने किसी परिजन की अप्रिय हरकत पर नाम डुबा देने की शिकायत करते हैं जबकि लोगों को अपने से पहले की दो-तीन पीढ़ीयों तक के नाम का ही पता नहीं है। खाप पंचायतें किसका नाम खराब होने का रोना रोती हैं......किसके लिए और क्यों......।
मन तो कह रहा है प्रार्थना करने के लिए कि - हे खाप देवता.....यदि आपको अपनी औकात जाननी हो तो कृपया गाँवों का दौरा करें......नाम में क्या रखा है यह शेक्सपियर ने जरूर कहा था....लेकिन उसको अमली जामा भारत के गाँव पहना रहे है......किसका नाम डुबो देने की डुगडुगी खाप देवता बजाए जा रहे हो.....अब बंद भी करो खाप की थाप।
अगले घर में सर्वे एक आम के पेड़ के नीचे खटिया बिछाकर हो रहा है। एक शख्स के जन्म तारीख के बारे में तो गाँव वालों का हिसाब है कि - जब इनका जन्म हुआ तब रजई के बाबू शहर गए थे और खूब पानी बरस रहा था छकछकाय के।
अब बताईए....कैसे पता लगाया जाय कि रजई की क्या उम्र है। ज्यादा पूछताछ करने पर इतना ही हिसाब लग सका कि फलाने देखने में चालीस ओलीस के लग रहे हैं और चूँकि रजई के बाबू जब शहर गए थे तो छकछका कर पानी बरस रहा था यानि सावन का महीना पकड़ लिया जाय.....चालीस जोड़ दिया जाय... हो गया उम्र का खाना पूरा।
चलो, अब इनका हुआ।
हाँ जी, आप बताईए......और..... क्या लिए हो गठरीया में।
दाना है
अरे तो रख दोगे कि सिर पर लिए खड़े रहोगे। मार के भागना है क्या ?
उमिर..... लिखिए पैंसठ बरीस।
अच्छा........औ महीना ?
लिख दो जो समझ में आए।
ठीक......अब ये बताईये कि आपके घर में कितने दपंत्ति हैं।
धमपत्ती तो कोई नहीं है मेरे यहां।
अरे दादा....दंपत्ति माने..... विवाहित जोड़ा पूछा जा रहा है.....कि केतना लोग के बियाह हो गया है..।
अच्छा..... लिखिए चार गो.......
घर........नाबदान.......फोन........मोबाईल...........कार......और क्या क्या है...........घर खपड़े वाला है कि पक्का।

अरे दादा...पूछना पड़ता है। लिखा है सब......
हां तो लिखिए खपड़हा घर .......कौनो जोजना में फैदा मिली खपड़हा लिखाए से।
अब दादा कुल फायदा ही देखोगे कि कभी नुकसान भी देखोगे।
अरे तो ये सब लिख पढ़ के किसके लिए ले जा रहे हो......कौन पढ़ेगा ये सब।
दादा...ये सब जाकर कंपूटर में चढ़ा दिया जाएगा.....उससे पता चलेगा कि हमारे गाँव में केतना मनई लोग हैं.....केतना के पास कच्चा घर है ...केतना के पास पक्का घर है.....औ वही देख के सरकार योजना बनाएगी कि किसको क्या कमी-बेसी है.......लोगों को देखेगी ताकेगी.....बस यही है इस लिखा पढ़ी का कारन।

दादा का उखड़पन जारी रहा.....हम लोग आगे बढ़ गए। इसी दौरान कहीं कहीं जाने पर रस वगैरह घोर घार कर पिलाया गया। मिंयाना में पहुंचने पर पहले ही पूछ लिया उन लोगों ने कि - ..... हमारे यहां का अन्न-पानी यादौ जी आप को चलेगा । मेरे हंस कर कहने से कि अरे मुझे सब चलता है....लाईए क्या ला रहे हैं......तो अंदरखाने में खट-खूट होने लगी।
यहाँ एक नीम के पेड़ के नीचे बैठ कर फार्म भरा जा रहा था कि तभी एक ट्रे में रूह-अफ्जा वाला शर्बत अंदर से आया। तपती दुपहरी में मनसायन.......जियो काजी चचा...।

हाँ काकी।
बातचीत के दौरान काकी से बताने पर कि बच्चों के स्कूल खूलने वाले हैं और इसलिए परिवार लेने आया हूँ तो काकी कहती हैं -
त अबहीं दुलहिन को लेने खातिर आए हो ?
दुलहिन.....। शादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी गाँव में बहू को दुलहिन ही कहा जाता है जबकि मेरे मन मानस में तो यही बैठा है कि विवाह के चंद रोज पहले और चंद रोज बाद का समय ही दुल्हा और दुल्हन कहलाने लायक समय होता है।
खैर, आगे की जनगणना चलती रही....सर्वे फर्वे होता रहा....लौटानी बेला पर बाकी साथियों के साथ मैं भी लौटने लगा ।

वाकई .......जनगणना करना बड़े जीवट का काम है। बहुत कुछ सोच समझ कर लिखना पड़ता है.......और सबसे बढ़ के बुढ़उ दादा जैसों के अनुभवी व्यंगावलीयों को झेलना पड़ता है......- लिख कर तो ले जा रहे हो....लेकिन कौन पढ़ेगा यह सब ?
- सतीश पंचम
स्थान - वही, जहाँ की सरजमीं पर जनगणना करते समय संख्या सौ थी.....अगले दरवाजे पर पहुंचते पहुंचते जनसंख्या एक सौ एक हो गई ।
समय - वही, जब प्रधानमंत्री के कार्यालय में लगी डिजिटल जनसंख्या घड़ी अचानक रूक जाय और प्रधानमंत्री जी कहें.....आज किसी ने इसमें चाभी क्यों नहीं भरी :)
( ग्राम्य सीरीज चालू आहे......)
20 comments:
बहुत दिनों के बाद उस्ताद, पूरे फारम में मिले ...
ऐसी पोस्ट बस सतीश पंचम ही लिख सकते हैं! कितनी ही ज़गहों पर रुक कर, पीछे जा दुबारा पढ़ कर और तिबारा तारीफ कर फिर आगे बढ़ना पड़ा। लगा जैसे नए जमाने के रेणु के साथ चल रहा हूँ:
शुरुआत ही ग़जब है:
जब गर्मी के मौसम में तपिश के साथ पछिवहीं लूची वाली आँच चेहरे पर पड़ती है तो लगता है जैसे चेहरे पर किसी वेल्डिंग नोजल का मुंह खोल दिया गया है। एकदम आग। रस्ता चलना दूभर ....... बाहर निकलने में जैसे पतंग पड़ी है.....और ऐसी ही खड़खड़िया दुपहरी के समय मैं अपने गाँव में जनगणना करने वालों के साथ घूम रहा था।
कोई कोई अपने पूरे परिवार के बारे में जानता तो है पर कन्फर्म नहीं है कि यही उनका ऑफिशियल नाम है......ज्यादातर लोग जनाब को बिजई.....गोबिन्द आदि नाम से जानते हैं पर स्कूल के रजिस्टर और जमीन जायदाद के कागजों पर क्या नाम दर्ज है इसके बारे में कुच्छौ नहीं पता.
खाप पंचायतें किसका नाम खराब होने का रोना रोती हैं......किसके लिए और क्यों......।
मन तो कह रहा है प्रार्थना करने के लिए कि - हे खाप देवता.....यदि आपको अपनी औकात जाननी हो तो कृपया गाँवों का दौरा करें.
एक शख्स के जन्म तारीख के बारे में तो गाँव वालों का हिसाब है कि - जब इनका जन्म हुआ तब रजई के बाबू शहर गए थे और खूब पानी बरस रहा था छकछकाय के।
आगे के सम्वाद, चकबन्दी, नरेगा, लाज लिहाज . . . क्या क्या क़ोट करूँ? छा गए गुरु !
और अंत का वाक्य "- लिख कर तो ले जा रहे हो....लेकिन कौन पढ़ेगा यह सब ?
" तो जैसे स्तब्ध कर देता है। हिन्दुस्तान में सालों साल चल रहे घपले का जैसे सूत्र वाक्य हो।
गुरु! एकाध जगह वर्तनी की ग़लतियाँ हैं, ठीक कर दो। ...
सतीश भाई - आपका लेख तो ग्रामीण अंचल के वातावरण का एक जीवंत चित्रण है। बहुत अच्छा लगता है आपके ब्लाग पर आकर्।
ढेरों शुभकामनाएं
आपके ब्लाग की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है
गाँव का सजीव चित्रण किया है, बधाई।
सुन्दर लेखन।
भाव प्रवाह के साथ गिरिजेश जी की वर्तनी पर भी पैनी नजर रहती है -पूरे दुसाध आदमी हैं ! कैसे साधे रहते हैं इन दोनों हुनरों को -अकल्पनीय !
और आपकी यह पोस्ट संग्रहणीय है ,गाँव का अलमस्त मौला असली चेहरा दिखा यहाँ -नाम को पकड़ कर बैठने वाले खाप की थाप बंद हो ,दुलहिन शब्द पर आपका सहसा चौक पड़ना -बबुआ गाँव को अभी देखे समझे नहीं ठीक से :)....और नारी प्रगणकों के स्थान पर उनके पति का दर दर भटकना और इस उल्लेख से नारी सशक्तीकरण के असली चेहरा का उघरना ....स्मरणीय है !
ये गांव है अमेरिका नहीं। यहां प्रेम है, सह्र्दयता है, श्रद्धा है, भक्ति है, देश केवल भौतिकता के सहारे टिका नही। सुन्दर रचना। बधाई!।
अरे एतना पूछ ताछ काहे कर रहे हो.....मालूम पड़ रहा है बियाह खातिर देखौआ बन कर आए हो ?
अब इतनी गर्मी में अंगौछा बाँध के घूमेंगे और ऐसे प्रश्न पूछेंगे तो यही न डायलॉग प्राप्त होगा ।
गाँव दर्शन हिट चल रहा है, जारी रहे ।
गिर्जेश जी ने सहि फ़र्मया ऐसी पोस्ट सिर्फ़ सतीश पञ्चम हि लिख सकते है >>>>>>>>>>>>>> बाकी भैया हमकु तो अपनी 22 पीढ़ियों का नाम मालूम है और उससे ऊपर की और आजू बाजू की बाकि रहे नामों को की भी खोज खबर में लगे पढ़े है >>>>>>>>>>>> पर कह सही रहे हो किसी को अपने दादा पडदादा के नाम भी याद नहीं सो मुझे भी काफी मुश्किल उठानी पड़ रही है >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
@ चूँकि रजई के बाबू जब शहर गए थे तो छकछका कर पानी बरस रहा था यानि सावन का महीना पकड़ लिया जाय.....चालीस जोड़ दिया जाय... हो गया उम्र का खाना पूरा।>>>>>>>>>>>> पूरे भारत में ही फैला है यह उम्र मापी पैमाना मैंने भी वंशावली के चक्कर में कई जगह ऐसे हे अंदाजे की उम्र पकड़ी है >>>>> की जब ऊपर वाली साल में किंवाडो की जोड़ी लगी थी उसके, तीन महीने बाद मेरे ससुर जी की भुआ का देवलोक हुआ था >>>>>>>>>>> अब भला बताइए की मुझे क्या मालूम "ऊपर वाली साल में किंवाडो की जोड़ी" कब लगी थी>>>>>>>>>>>>>>>
सतीशजी
मै आपकी हार पोस्ट पढती हूँ और आपकी ग्राम्य श्रंखला तो बहुत ही भा रही है \जनगणना की परेशानियों को बहुत ही महीनता से उकेरा है |कमोबेश शहरों में ,शहर की बस्तियों में भी यही हाल है |मेरी देवरानी शिक्षिका है उन्हें तो परेशानी तब हुई जबकि एक ही घर में एक आदमी की दो दो पत्निया है |हमारे घर जो महिला जनगणना करने आई थी उनकी उम्र ५९ साल की थी शरीर भी भारी ,जब भी उनके इकलौते बेटे की अपनी नौकरी से समय मिलता तब ही शाम को वे लोग निकल पाते जनगणना के लिए |
गाँव की एक पोस्ट मैंने कल ही डाली है अगर समय मिले तो देखिएगा |
शोभना जी,
इस दो पत्नी वाली जनगणना से मेरा भी सामना हुआ है....और साथ ही साथ एक और मामला काफी दिलचस्प किस्म का देखा... जिसे लिखने में थोड़ी झिझक तो हो रही है लेकिन कोशिश करूंगा कि तोप-ढंक कर अगली कड़ी में पेश करूं।
इसी दौरान हिस्सा- बाँट....नाम चढ़ौनी...मुकदमे बाजी के भी अंश देखने में आए।
मेरे विचार से जिसे कहानी की तलाश हो वह एक बार जनगणना के दौरान जरूर गाँव में साथ साथ चले....ढेरों दिलचस्प किस्म की कहांनियां बिखरी मिलेंगी जनगणना के दौरान।
वाकई, पढ़कर लगा कि कितने जीवट का काम है यह साधारण सा दिखने वाला विशाल सर्वे.
त दुलहिन भी साथे आई हैं कि अक्किल्ला- ये तो हम आज तक सुनते हैं गांव में.. :)
ग्राम्य जीवन के बारे में बढ़िया संस्मरण..... अच्छा लगा.. आभार
सतीश जी, सुबह पढ़ ली थी पोस्ट, लेकिन ऑफ़िस जाने का समय हो रहा था और सिर्फ़ वाह-वाह या ओह-आह टाईप के कमेंट से अपना काम नही चलता, विशेषकर यहाँ। कमेंट शाम तक मुल्तवी कर दिया था लेकिन हमारा कमेंट तो आपने खुद ही पोस्ट कर दिया, "मेरे विचार से जिसे कहानी की तलाश हो वह एक बार जनगणना के दौरान जरूर गाँव में साथ साथ चले....ढेरों दिलचस्प किस्म की कहांनियां बिखरी मिलेंगी जनगणना के दौरान।"
न सिर्फ़ दिलचस्प कहानियाँ, बल्कि जिन्दगी के कई अनदेखे, अनछुये पहलू भी दिख जायेंगे। एक जो सरकारी कर्मचारियों की आलोचना लोग करते हैं, प्रैक्टिकली खुद को उनकी जगह रखकर देखें तो एक नया ही अनुभव होगा।
बहुत दिलचस्प चल रही है ग्राम्य कथा। आप भी हर पल को जी रहे हैं, ऐसा नहीं कि गांव गये तो घरघुस्सू होकर रह गये
@ घरघुस्सू.....
संजय जी,
बड़ा टिपिकल शब्द है यह.....कहा जाता है कि जब कोई परदेसी घर आता है तो उसका सिर बहुत दर्द देता है....पत्नी उसकी सेवा टहल करती है और गाँव वगैरह में उस दौरान घरघुसना का ठप्पा लगते देर नहीं लगती :)
आपका पूरा गाँव घूम लिया हमने भी, वो भी बिना गर्मी की दुपहरिया झेले :)
बहुत ही मजेदार अनुभवों का लेखा-जोखा और कई भूले-बिसरे शब्द भी मिले (हो सकता है,मैं अपनी कहानी में प्रयुक्त कर लूँ...पहले से सूचित कर दे रही हूँ :) )
पर वो आपकी सर पर गमछा बांधे वाली फोटो क्यूँ नहीं है?..वो भी लगानी थी,ना
रश्मि जी,
वह फोटो मैंने एक बार पोस्ट के ड्रॉफ्ट में रखा जरूर था पर पब्लिश करने से एन पहले हटा लिया :)
अभी यह ग्राम्य सीरीज और कुछ समय चलेगी....सो
तस्वीर अगली पोस्ट में :)
वाह, वाकई शानदार
vivj2000.blogspot.com
"जब इनका जन्म हुआ तब रजई के बाबू शहर गए थे और खूब पानी बरस रहा था छकछकाय के।"
मजा आ गया! कुछ ऐसे ही अंदाजा लगाते हुए देखते हैं बाकी लोगों को भी...फलानवे के ढीमकवे पर हुआ था....जो है सो की....
जय हो। ग्राम्य सीरीज की अगली कड़ी का इंतजार है। इसको दो दिन पहले बांचे। अब टिपिया रहे हैं। उधार चुका,चैन मिला।
बहुत गज़ब पोस्ट.
कमाल है. और आप कमाल हैं. गाँव सीरीज में जो कुछ भी पढ़ने को मिलता है पूरे भारत की तस्वीर खींच देता है. फोटो भी बहुत बढ़िया.
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