इस बार गाँव जाने पर मुझे एक बिच्छू ने डंक मार दिया....सनसनाता....फनफनाता डंक......। बिच्छू का डंक क्या होता है यह पहली बार जाना....पहली बार उस दर्द को महसूस किया और उस छटपटाहट से गुजरा।
हुआ यूँ कि रात का समय था....करीब आठ ओठ बजे होंगे........पूरूवा हवा चल रही थी........कि किसी बात पर मैं खाट से नंगे पैर नीचे उतर गया। दो चार कदम ही चला होउंगा कि लगा किसी की जलती बीड़ी मेरे तलवों के नीचे आ गई है। तुरंत दिमाग ने किसी अंदेशे की ओर इशारा किया और मुँह से इतना भर निकला कि - कुछ काट लिया है। बस....फिर क्या था.......आस पास एक तरह की खदबदाहट शुरू हो गई........ तुरंत ही पास खड़ी अम्मा ने टॉर्च जलाकर देखा तो जमीन पर एक बिच्छू था।
अब...।
उस बिच्छू को तो तुरंत ही चप्पल से पट पटा कर मार दिया गया.......वैसे भी सुना है कि पुरूवा हवा चलने पर जमीन पर रेंगने वाले जीव जंतु जैसे सांप- बिच्छू वगैरह ज्यादा निकलते हैं........इधर मेरी हालत खराब होने लगी। लग रहा था कोई अब भी जलती बीड़ी लगातार मेरे तलवों में रगड़ रहा है। उधर नजर घुमाई तो मोटर साईकिल स्टार्ट की जा चुकी थी। सब समझ गए थे कि अब बिच्छू का डंक मुझे रात भर तड़पाएगा.....लोग कर भी क्या सकते थे......आनन फानन में भतीजे ने कसकर पैर में एक दुपट्टा बाँध दिया।
अगले ही पल मोटर साईकिल गाँव की कच्ची पगडंडियों, कोलतार की सड़कों और खडंजा से होते हुए सरपट अँधेरे को अपने हेडलाईट से चीरती भागी जा रही थी............मोटर साईकिल भतीजा चला रहा था...बीच में मैं बैठा था और पीछे छोटा भाई।
यूँ तो कभी बाजार आना हो तो बिना पैंट या पाजामे के नहीं आता....लेकिन आज पोजिशन दूसरी थी। लुंगी पहने पहने ही बाजार में जाना पड़ रहा था और वह भी एक पैर में दुपट्टा बाँधे :)
गनीमत थी की रात का अँधेरा था......ज्यादा परिचित नहीं मिले रास्ते में और जो मिले भी वह हादसे की हकीकत जान कर ज्यादा पूछताछ न किए ......मामला समझ गए थे वह भी लेकिन डॉक्टरी जल्दी के चलते ज्यादा पूछे ओछे नहीं।
गाँव में अमूमन आठ बजते ही ज्यादातर दुकान वगैरह बंद हो जाते हैं...शहरों की तरह देर रात तक दुकाने आदि कोई नहीं खोले रखता। एक डॉक्टर के यहाँ पहुँचने पर पता चला कि उसके पास वह दवा ही नहीं है जो इस तरह के बिच्छू काटे विष का शमन कर सके......उसी ने दूसरे डॉक्टर का नाम लिया कि फलाने के पास चले जाओ....काम हो जाएगा....वह रखते हैं उस तरह की दवा और अच्छा खासा इस मामले में उनका नाम भी है।
लो भई...चलो अब लुंगी पहने पहने नामी डॉक्टर के यहां। उस डॉक्टर के यहां जाने पर पता चला कि अभी अभी वह क्लिनिक बंद कर घर चले गए हैं। थोड़ी दूरी पर ही उनका घर है...हो आईए। मरता क्या न करता। लुंगी पहने पहने ही मोटर साईकिल की दिशा डॉक्टर साहब के घर की ओर मोड़ दी गई....। डॉक्टर साहब को देखते ही मैं सन्न.....मैं अपने आप को लुंगी पर होने के कारण लजा रहा था और देखा तो डॉक्टर साहब नीले रंग की पट्टेदार नाड़ेवाली चड्ढी पहने घर के आगे बैठे हवा ले रहे हैं।
अपना दर्द भूल थोड़ी देर तो डॉक्टर साहब की भाव भंगिमा देखता रहा..........सोच रहा था कि एक मेरे मुंबई शहर के डॉक्टर हैं........रात दिन लगता है सूट पहन कर ही रहते हैं....... .और इधर इन डॉक् साहब को देखो.....पट्टेदार चड्ढा पहन कर बाहर हवाबाजी कर रहे हैं। इधर बिच्छूराम के दंश के कारण फिर से अपनी दुनिया में लौट आया...... पैर में जहां पर दुपट्टा बँधा था उसके नीचे का हिस्सा जैसे आग हो गया था....एकदम गर्म।
डॉक्टर साहब के पास मोटर साईकिल से उतार कर ले जाया गया........उन्होंने थोड़ी बहुत पूछ ताछ की और लगे मेरे मुँह में दो चार बूँदे एक दवा की गिराने। समझते देर न लगी कि यह होमियोपैथिक डॉक्टर हैं और अब होमियोपैथ वाले तरीके से ही मेरा इलाज करेंगे। इधर मेरी चिंता दूसरी थी कि होमियोपैथिक में तो काफी समय लग जाता है किसी दवा के असर करने में..... तो क्या मैं तब तक यूँ ही तड़पता रहूँगा.....लेकिन डॉक साहब ने ज्यादा सोचने न दिया.....फिर तीन चार मिनट बाद मुँह खोलवा कर तीन चार बूँदे मेरे हलक में टपकाया........।
बगल में ही एक डब्बा पड़ा था जिसमें पानी भर कर उसमें मेरा पैर रख दिया गया। अब दवा तो डॉक्टर साहब ने मेरे मुँह में डाल दिया लेकिन उस दवा को तो पैर के उस हिस्से तक पहुँचना भी चाहिए था जहाँ बिच्छू ने डंक मारा था.....लेकिन वहां तक पहुँचे कैसे.....बीच में तो दुपट्टे ने रास्ता रोक लिया था.......सो, दुपट्टा खोलने को कहा गया.....पर दुपट्टा खुले तब न............बाँधने वाले ने इतना जबरदस्त बाँधा था कि क्या बताउं........किसी तरह दुपट्टा खुला और जो जलन पैर के निचले हिस्से में अब तक थी, वह एकाएक कसा दुपट्टा हट जाने से सीधे जाँघ तक आ गई। लगा कि किसी ने मेरे बाँए पैर को तेजाब से नहला दिया है।
थोड़ी देर के लिए डॉक्टर साहब की खटिया पर ही सो रहा......इस बीच डॉक् साहब रह रह कर हर तीन चार मिनट पर मेरे मुँह में दवा टपकाते जा रहे थे...लेकिन दर्द था कि कम ही नहीं हो रहा था। तब डॉक्टर साहब ने अपने क्लिनिक पर ले चलने को कहा....अंदेशा था कि कोई लापरवाही न हो जाय। क्लिनिक में पहुंचने पर अब दो तीन और बोतलें पास रखीं देखा। सभी से दो - तीन बूंद हर तीन चार मिनट पर मेरी जीभ पर टपकाया जाता रहा.....दर्द थोडा कम होना शुरू तो हुआ लेकिन बंद नहीं हुआ। आखिरकार लगभग आधे घंटे की सेवा टहल के बाद मैं अपने पैरों पर खड़ा हुआ लेकिन पैर में दर्द अभी भी काफी बना रहा।
डॉक्टर साहब ने कुछ साबुदाना टाईप गोलियां दी और हिदायत के साथ रूखसत हुए। फीस लिए मात्र पच्चीस रूपए। मैं हैरान था कि एक तो डॉक्टर को घर से उठा कर लाया गया....... पूरा एक घंटा इनका मुझ पर खर्च हुआ लेकिन फीस लिया केवल पच्चीस रूपए ? मुझे ज्यादा सोचना न पड़ा क्योंकि पैर का दर्द बार बार कुछ और सोचने से मना कर देता और बार बार अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेता।
वहाँ से दवा आदि लेकर सोचा गया कि चलो उस झाड़ फूंक वाले के यहां भी हो आया जाय जो गाँव में बिच्छू आदि के जहर को उतारता है। मुझे भी कुछ रूचि थी उसे ऐसा करते हुए देखने में......थोड़ा मौज ही सही.... सो मोटर साईकिल अबकी कच्ची पगडंडियों पर दौड़ रही थी। वहाँ पहुंचने पर माहौल कुछ दूसरा ही था। पता चला कि यहीं की एक महिला को करैत सांप ने काट लिया है और उस महिला ने जानते बूझते हुए भी किसी से इस घटना का जिक्र तक नहीं किया... कि सांप ने काटा है.....केवल इतना कह रही थी कि वहां एक सांप बैठा है उसे मारो......लेकिन किसी ने सांप को बिना वजह मारना ठीक नहीं समझा......कारण भी महिला ने अब तक नहीं बताया था ताकि लोग तुरंत हरकत में आते..........वह महिला आराम से आई....रोटी बनाई......थोडी देर में जब बेहोशी छाने लगी तब लोगों का ध्यान उसकी ओर गया और लोगो को तब समझ आया कि यह करैत को मारने के लिए क्यों कह रही थी।
महिला के बेहोश हो जाने पर उसके परिजन उसे शहर की ओर लेकर भागे थे.......अब हम लोग भी वहां रूक कर क्या करते.....लेकिन तभी वहीं की एक लड़की ने मेरे डंक को देख कर घर से एक तरह की दवा ले आई और उस डंक वाली जगह पर लगा दिया। पूछने पर कि उस महिला को क्या आप लोग इलाज वगैरह नहीं कर सकते थे तो उसने बताया कि हम कर तो सकते थे लेकिन काफी देर से उसने बताया और ऐसे में खतरा लेना ठीक नहीं, सो उसे सीधे अस्पताल ले जाया गया है शहर में।
वापस में अंधेरे में लौटते समय मोटर साईकिल की हेडलाईट के उजाले में देखा कि कुछ और लोग गाँव के ही शहर की तरफ जा रहे थे उस महिला को देखने।
इधर घर लौट कर मेरे लिए चिंतातुर लोगों की संख्या ज्यादा दिखी। सब लोग एक ही बात कह रहे थे, अब चौबीस घंटा तक दर्द रहेगा.......सो किसी तरह सह लो......बाकि अब क्या किया जा सकता है। चौबीस घंटा सुनकर तो मैं और पगला गया कि यार ये कैसे लोग हैं.....एक दो घंटा न बताकर सीधे चौबीस घंटो का दर्द कह रहे हैं......लेकिन यह उनका भोगा हुआ अनुभव था जो उन्हें यह कहने पर बाध्य कर रहा था....सभी लोग जानते थे कि चौबीस घंटों तक यह रह रह कर परेशान करता है।
उधर मैं खाट पर सो नहीं पा रहा था....सोते ही लगता था जैसे दर्द पैर से उपर की तरफ आ रहा है.....मजबूरन उठ कर खडा हो गया.......और यहां वहां डोलता रहा। हां इतना जरूर किया कि अब टॉर्च की रोशनी और चप्पल पहन कर डोल रहा था। रात भर कभी इस ओर जाता कभी उस ओर जाता......बीच बीच में खाट पर बैठ भी जाता लेकिन दर्द बराबर बना रहा।
धीरे धीरे जो लोग आस पास आंगन में खडे थे सब सोने चले गए। चाचा जी बाहर बरामदे में रखी टीवी पर पुरानी फिल्म देख रहे थे.....बीच बीच में पूछ भी ले रहे थे......का हो.....का हाल बा.......मैं भी हां ठीक बा कह रह जाता ........असल हालत तो मैं जानता ही था........ इधर श्रीमती जी भी चली गईं सोने....... जाहिर हैं वह भी काफी परेशान रही थी यह सब देखकर.......। करीब एक डेढ़ बजे रात में अचानक फिर से दर्द तेज हो गया.....एक लहर सी उठ रही थी पूरे बदन में........ भतीजे ने तुरंत मेरी हालत देख उपले रख कर आग जलाया। उन उपलों की आँच में मैंने अपना पैर सेंकना शुरू किया तो कुछ राहत मिली। पहले तो डंक वाला ही पैर सेंक रहा था लेकिन आँच से मजा इतना मिला कि बिना डंक वाला पैर भी सेंकने लगा :) जून महीने की गर्मी में आग से सिंकाई......भला कोई सुनेगा तो क्या कहेगा......ठंडी का सीजन होता तो बात ही कुछ और थी.....लेकिन जून की तपिश में आग से सिंकाई.......बड़ी वाहियात गल्ल है जी :)
इसी बीच जब आग से थोड़ी राहत मिली तो मुझे राते के डेढ़ बजे टाईम पास करने की सूझी......भतीजे से पूछा कि वह बिच्छू कहां है जिसे मारा गया तो उसने टार्च की रोशनी में ढूँढ निकाला.....वहीं कहीं पास ही एक कोने में उसे मार कर फेंका गया था। तुरंत मैंने उसे खाट की पाटी पर रख उसका मरणोपरांत फोटो खींच डाला। भतीजा हंस रहा था कि यह इतनी रात गए मुझे क्या सूझी........उसको क्या पता था कि यह बिच्छू... बिच्छू न होकर मेरी एक पोस्ट है......आखिर ब्लॉगर जो ठहरा :)
पूरी रात इसी तरह गुजारी और धीरे धीरे सुबह होने को आई.......इसी बीच श्रीमती जी से चाय बनाने के लिए कहने गया......वह भी जाग ही रही थीं......नींद उन्हें भी नहीं आई थी.........।

इधर मैं सोच में पड़ गया कि .....मैं बिच्छू के पाले पड़ गया तो उसने केवल एक डंक ही मारा था और तिस पर भी मैं जिंदा रहा.....लेकिन जब बिच्छू इंसान के पाले पड़ा तो उसे तो सीधे मौत ही नसीब हुई।
ज्यादा खतरनाक कौन ...... बिच्छू या इंसान :)
- सतीश पंचम
30 comments:
बॉस. ज्यादा खतरनाक तो बिच्छु ही है(जवाब इंसान देगा तो यही जवाब मिलेगा न?)|
पिछली बार वो पर्ची पर गोल निशान वाले डाक्टर साहब के बाद इस बार नीले रंग की पट्टेदार नाड़ेवाली चड्ढी पहने डाक्टर से मिलना मजेदार रहा हमारे लिए, आप तो पापी बिछुआ के दंश को झेल रहे थे|
इस बार स्थान व समय नहीं लिखा अंत में, वो ऐसा ही आईटम होता है जैसे खाने के बाद पान :))
आपकी इस पोस्ट ने ग्राम्य जीवन की अनके दुखद परिस्थितियों को उजागर किया है और यह भी दर्शाया है कि पढ़े लिखे लोगों में भी मानव जीवन से जुडी ज्ञान विज्ञान की जानकारियाँ अभी भी शोचनीय स्थिति में है !
आप बहुत भाग्यशाली रहे किसी करैत- नाग ने जान बख्श दी भोले बाबा ने महज अपने एक नन्हे से चौकीदार को भेजकर आपको आगाह कर दिया -
आगे जब भी आप अथवा कोई भी साथी गाँव प्रवास पर जायं -
पैरों में बिना जूते पग भर भी रात में न चले -चप्पल भी पूरी सुरक्षा नहीं देता ,सापों से तो बिलकुल भी नहीं
गाँव के निकट के पी एच सी पर डाक्टर डाक्टर से पहले ही मिल कर अंटी वेनम इंजेक्शन जरूर रखवाएं
बच्चो को बिच्छू का डंक प्राणलेवा हो सकता है ....और जान काफी लम्बे समय के उपरान्त श्वसन तंत्र के अचानक चोक हो जाने से होती है ...
दंश के उपर की एक हड्डी वाले हिस्से में किसी कपडे या रस्स्सी का बाँध लगाना चाहिए -और कभी भी बहुत कसा नहीं होना चाहिए ..
अगली बार आयिये तो विस्तार से आपको फर्स्ट ऐड की जानकारी दूं ..बच गए बच्चू !हा हा हा
अरविंद जी,
आपकी यह बात सच है कि ग्राम्य जीवन में कई किस्म की दुखद परिस्थितियां हैं....इसके अलावा यह भी उतना ही सच है कि पढे लिखे लोगों में भी मानव जीवन से जुडी ज्ञान विज्ञान की जानकारियां अ
भी भी शोचनीय स्थिति में है।
अब मेरे ही केस को लें...कायदे से तो मुझे किसी ढंग के चिकित्सालय जाना चाहिए था लेकिन रात के समय हालात ऐसे बने कि जो कुछ सामने था उसी से काम चलाना पड़ा और तुर्रा यह कि कुछ मौज लेने या कहें कि जानने की इच्छा से भी झाड फूंक वाले के यहां चला गया कि क्या पता उससे भी आराम हो जाय कुछ।
और हां, अगले दिन से जब तक रहा हमेशा चप्पल पहन कर ही रहा...रसोई तक में चप्पल पहने ही जाता था...सो समझ सकते हैं कि बिच्छू ने एक तरह से मुझे उस हाई क्लास सोसाइटी का सदस्य बना दिया जो घर में भी बिना चप्पल या जूता पहने नहीं रह पाते.....चाहे रसोई हो या मंदिर :)
संजय जी,
स्थान और समय लिखने की तुलना खाने के बाद पान से करना बहुत रोचक लगा :)
काफी रात में इस पोस्ट को लिख रहा था सो स्थान और समय इस बार आलस या कहें कि नींद के कारण नहीं लिख पाया :(
अगली बार पक्का।
"का हो का हाल बा?"
सबसे मजेदार लगा आपके चाचा द्वारा आपका हालचाल पूछने का काम. बहुत बढ़िया पोस्ट..सॉरी सॉरी बिच्छू है...:-) अरविन्द जी का कमेन्ट महत्वपूर्ण है. गाँव में इस तरह के दिनों में अच्छे डॉक्टर का मिलना बहुत ज़रूरी होता है.
आपका दर्द अनुभव कर सकता हूँ । बर्रैय्या ने काया था तो हम उछले उछले घूमे थे । इन्सान के काटे का इलाज नहीं, दिल पर चोट करता है ।
इंसान ही हैं ज्यादा खतरनाक ...
सांप -बिच्छू तो छेड़े जाने पर काटते हैं ...अनजाने ही सही ...:):)
ब्लॉगर जिस विषय पर ना लिख दे ...अच्छा जरिया है दुःख दर्द बांटने का ...
मैं बिच्छू के पाले पड़ गया तो उसने केवल एक डंक ही मारा था और तिस पर भी मैं जिंदा रहा.....लेकिन जब बिच्छू इंसान के पाले पड़ा तो उसे तो सीधे मौत ही नसीब हुई।
ज्यादा खतरनाक कौन ...... बिच्छू या इंसान :)
कुछ कहने लायक छोड़ा कहाँ ,आपने यह कहकर....
बिच्छू के काटने पर सुना है, सबसे भयंकर दर्द होता है...और आपने तो अनुभव भी कर लिया...अब अरविन्द जी की सलाह पर ध्यान दें...वैसे इतने दर्द में भी उस का फोटो भी खींच डाला :)...पर अच्छा किया दर्द से ध्यान बंटाने का एक जरिया भी मिला..
आ गया है ब्लॉग संकलन का नया अवतार: हमारीवाणी.कॉम
हिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए खुशखबरी!
ब्लॉग जगत के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है। इस ब्लॉग संकलक के द्वारा हिंदी ब्लॉग लेखन को एक नई सोच के साथ प्रोत्साहित करने के योजना है। इसमें सबसे अहम् बात तो यह है की यह ब्लॉग लेखकों का अपना ब्लॉग संकलक होगा।
अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:
http://hamarivani.blogspot.com
Bichhu ke dankh se to insaan bach jata hai( haan gar bichhu kala na ho),insaani dankh to seedhe maut ke ghaat utara deta hai! Dono dankhon ki bhukt bhogi hun! Mera to yah punarjanm hai!
blogger hone ke leye ek camera her waqt sath hona jaruri hai.
hahah
पोस्ट पढ़कर ऐसा लग रहा था मानो मुझे ही बिच्छू ने काट लिया हो. एक तो बार तो तलवे को हिला कर चेक कर रही थी. बहुत दुःख हुआ जानकार, आशा है की अब आप बेहतर होंगे.
"मैं अपने आप को लुंगी पर होने के कारण लजा रहा था और देखा तो डॉक्टर साहब नीले रंग की पट्टेदार नाड़ेवाली चड्ढी पहने घर के आगे बैठे हवा ले रहे हैं।" - मजा आ गया इस लाइन को पढ़ कर :D
और चाचा का - का हो, का हाल बा..बहुत परिचित लगा...मेरे घर जैसा. :)
laga ki aapke sath ham bhi chal rahe hain har jagah . achhi post . shukriya.
आखिर बिच्छू भी कब तक बर्दाश्त करता ...आपको याद भी है आपने कितनी बार उससे वादा किया था कि इमरान हाशमी का रोल कटवा कर उसे दिलवाएंगे ..हर बार मुंबई जाकर भूल गए ।
अईसे ही एक डाक्टर चड्डा ..हमको भी टकरे थे एक बार गाम में ....मगर ऊ बहुते इंटेलिजेंट थे ..पल्स पोलियो अभियान वाला लोग से एक पेटी मार के रख लिए थे ...ससुरा वायरल फ़ीवर से लेकर ..हैजा तक में सबको उसी में से दो बूंद जिंदगी के टपका देते थे ...
आपका गाम एक बार चलना ही पडेगा ..आखिर उस बिच्छू से मिल कर उसे मानवाधिकार आयोग का पता भी तो देना है न ..आप तो दिए नहीं होंगे
(हमारे लिए तो) रोचक बिच्छू पोस्ट :-)
अब का हाल बा?
आपके इस वृतांत ने मुझे 30 वर्ष पहले की एक घटना याद दिलवा दी। कोशिश करता हूँ आपसे मिलने के पहले उसे लिखने की
पाबला जी,
30 साल पुराना अनुभव लिखिए , अपन भी पढ़ने का इंतजार कर रहे हैं.....और हां, मुंबई कब आ रहे हैं ?
उस शहीद की जो आपने फोटो खेंची थी वो पोस्ट पर प्रदर्शित नहीं हुई। बढिया लेखन।
अजित जी,
यहां सबसे उपर लगी एक जो अँधेरे में टॉर्च की रोशनी में खींची तस्वीर है उसी में खटिया के पाटी पर वह शहीद रखा हुआ है...तनिक ध्यान से देखिए.....यह वही शहीद है जिसने मेरी इतनी गत बनाई थी :)
क्या तस्वीर भी असली है ? भाई इन असुरों का डर ही गाँव जाने से डराता है.
तुम्हारा लेखन हमेशा की तरह लाजबाब ....
राम त्यागी जी
@ क्या तस्वीर भी असली है ?
अब लगता है मुझे इस शहीद से ही पूछना पडे़गा जो खाट की पाटी पर मरा पड़ा है कि उसकी यह तस्वीर असली है कि नकली :)
राम जी, यह तस्वीर उसी बिच्छू की है जिसे चप्पल से पटपटा कर मार दिया गया था।
ब्लागर को डंक मार कर बिच्छू अमर हो गया ।
बिच्छू के काटने से जो कुछ आपने भगता वो तो भुगता ही पर पोस्ट बहुत रोचक लिखी है...गांव की चिकत्सीय कमिय भी उजागर हुईं...
वैसे एक बात कही जाती है की जिसे बिच्छु का काटा चढ़ता है उसे बर्रिया का काटा नहीं चढ़ता और जिसे बर्रिया का काटा चढ़ता है उसे बिच्छू का नहीं...अब यह कितना सच है नहीं मालूम...
ज्यादा खतरनाक तो आप ही लग रहे है...
बात कहाँ से शुरू की और कहाँ ला कर पटक दी..!
शत्रु की तो निर्ममता पूर्वक हत्या करते ही हैं..फिर चाहे इंसान हो या जानवर. हाँ, साधू महात्मा की बात और है...बिच्छू बार-बार काटता है मगर बार-बार उसे न मारकर पानी में छोड़ देते हैं ..! पूछने पर कहते हैं कि वह अपना धर्म निभा रहा है और मैं अपना.
..आपने भी ब्लागर धर्म का निर्वहन किया..भगवान उस बिच्छू की आत्मा को शांति प्रदान करे..
बहुत दिनों बाद खटिया की बुनाई ग़ौर से देखी। मेरे गाँव में खटिया लुप्तप्राय हो चली है। कारण है कोई बुनना नहीं जानता। पिताजी बहुत अच्छा बुनते थे लेकिन अब आयु का प्रभाव हो चला है। हो सके तो खटिया की बुनावट दिखाती हाइ रिजोल्यूशन फोटो लगाइए और अगली पोस्ट में बुनाई की प्रक्रिया भी दर्शा दीजिए। नेट पर आगे की पीढ़ियों के लिए सहेजना ठीक होगा।
बिच्छू गाथा तो विस्तृत रूप में सुन चुके हैं, कहने को क्या बचा ?
आप के यहाँ 'गोंजर' दिखते हैं क्या ?
हाँ, प्लास्टिक की रस्सियों से बुनी खाट पर नहीं सोना चाहिए।
humesha ki tarah shaandaar post !
अच्छा संस्मरण ।
रोचक पोस्ट!
बेचारा बिच्छू ब्लॉगर को काटा और मारा गया। :)
बेचारा बिच्छू ... मरता मरता भी एक पोस्ट लिखने का मसाला दे गया।
भगवान स्वर्गस्थ की आत्मा को शान्ति दे।
बिच्छु ये तो कुछ ज्यादा ही एमरजेंसी केस हो गया आप का | वैसे आप बड़े हिम्मती थे कि ओझा के पास चले गये उस दर्द में , हम तो ले जाने वाले को ही गरियाने लगते और शायद ओझा महाराज को भी न छोड़ते |
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