टीवी देखते, समाचार सुनते और उमडते घुमडते सवालों के बीच टीवी पर बताया जा रहा है कि लाईनमैंन को गनपॉईंट पर अपहरण कर रेल ट्रैक में गडबडी की गई.....कहा गया कि करो नहीं तो तुम्हें और परिवार वालों को मार देंगे......एक ओर सिंदूर.......एक ओर लाल संघर्ष......इन्हीं सब से दो चार होता.......एक कोलाज।
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दिल की ये आरजू थी कोई दिलरूबा मिले……सितार वाले… राजबब्बर.…….महेंद्र कपूर…….……चाय पी लो ठंडी हो रही है…..सी टी सी चाय ……..……गर्म हैंडल…..ए घुम ले ........ए घूम ले..... ये दुनिया बड़ी मजेदार….अमेरिकन टूरिस्टर…..गोरा आदमी……..श्वेत विला बन रहा है दोस्त…….पवई इलाके में ही तो……….अपना ख्याल रखना गारनियर…….जाते हो परदेस पिया तुम जाते ही ………..स्माईली ओढ़ाती पत्नी…….एम डी एच मसाले…….पान खाए सरीखा दिल…….बिछड़ता सैनिक…..उबलती चाय…….गर्म तवा……एक बूंद…….सनननन
राईट टाईम……..बोल कि लब आजाद हैं तोरे….……..विकलांग राजनीति का शिकार………अमिताभ बच्चन…..बोले तो…….हाईट ऑफ फैशन ……छह फुट दो इंच ………अमर सिंह………बोले रे पपीहरा……पपीहरा…….इत उत डोले………मुलैमा चूडीबाज………कौन दिसा में लेके चला रे ……..माया संस्कृति…..डिस्कवरी चैनल फेल हो रहा है दोस्त…….…

बंद होते गेट…..खट खुट…..सब ठीक है……..पीला पिशाब…….गर्मी का मौसम ……..बहुत मारा…….सफेद पिशाब……गर्मी निकल गई …….खाने में कंकड़ ……. थूक मत ………नक्सल समस्या पीलापन लिये हुए है……….पिशाब सफेद करवाना पडेगा........साले नक्सली..... …….…कुत्ते की तरह पीटो .......एक कंकड़ कम …..कंकड़ कंकड़ जोड़ के…..मसजिद लिया चुनाय……..का बात कर रहे हो गुरू........…. सिंदूरी राजनीति चल रही है मित्र……..कल पटरी उखडी…….आज पटरी बैठी…… सीबीआई जांच की मांग …….. ठंडा बस्ता तैयार…….......नक्सल महतो.....उमाकांत महतो.....लाईनमैन .......गनपॉईंट पर रेल ट्रैक.......फिश प्लेट........उखाड़ साले ……सिंदूर लगाती सींक……..लाली कम है री…………...दोख होता है…..पति मुस्किल में पड जायगा.......दयाराम महतो...... …….उमाकांत महतो.........बापी महतो........पीसीपीए ........माओवादी.…..आहि रे ज्ञानेश्वरी.....सर्वे भवन्तु सुखम्........लाल सिंदूर.....एक मांग की लाली......बचा लेना राम.........सैंकडों सूनी हुई.........जंगल.....सन्नाटा.....धांय....धांय......धांय.......
स
ऐ मुक्ति बाबू......इधर किधर......... पार्टनर.......... तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है ।
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कोलाज के बारे में - थोडा सा कोलाज के अमूर्त तत्वों का खुलासा कर दूं क्योंकि कहीं कहीं लग रहा है कि कुछ ज्यादा ही Abstractism आ गया है पोस्ट में। कमेंट देख कर भी यही महसूस कर रहा हूँ।
यहां शुरूवात में राजबब्बर पर फिल्माए और महेन्द्र कपूर द्वारा गाए गीत से हो रही है जिसके बोल हैं दिल की आरजू थी कोई दिलरूबा मिले जिसका तात्पर्य आगे जाकर खुलता है कि एक अच्छा सा शांति दायक सूकूनदेह रहने लायक देश की इच्छा थी। इसी बीच आजकल अमेरिकन टूरिस्टर वाला ऐड की ओर इशारा किया गया है कि कैसे सारा देश अमेरीकी चादर ओढते जा रहा है।
अभी हाल ही में मुंबई के पवई इलाके मे एक श्वेत विला नामक बिल्डिंग का ऐड देखा जिसमें रहने वाले श्वेत विदेशी मेंम की तस्वीरे हैं। उसमें रहने वालो के ठाठ विदेशीयों जैसे बताए गए हैं। नाम भी श्वेत विला रखा गया है। अर्थात देश अब भी उसी विदेशी मानसिकता से गुजर रहा है।
आगे मैने लिखा है कि अपना ख्याल रखना गारनियर....जो कि टीवी पर आते गार्नियर से प्रेरित है जिसमें पंचलाईन है कि अपना ख्याल रखना। इस पर एक तरह से घर से व्यंग्य और हास्य का पुट मिलाते हुए कहा भदेस शब्दों में बात कहने के लिये शुद्ध गार्नियर न लिख गारनियर लिखा है यानि कि जब घर से विदा हो रहा है कोई तो घर की महिला कहती है अपना खयाल रखना गारनियर। स्माईली ओढाती से तात्पर्य मुस्काती पत्नी से है जो अपने पिया को जाते हो परदेस पिया जाते ही खत लिखना गाने के आलोक में विदा कर रही है।
इसी बिछड़ाव के दौरान तिक्तता भी बढ़ती है कि वह उसे क्यो न ले जा रहा है मसाले की उपमा और पान खाए सरीखा दिल उसी की ओर इशारा कर रहा है।
एक सैनिक की विदाई भी उसी अंदाज में हो रही है, चाय उबल रही है, पत्नी रो रही है और उसके आंसूओं के बूंद सैनिक के दिल में गर्म तवे पर पडे बूंद से सनसना रहे हैं और लुप्त भी हो जा रहे हैं तुरंत। आखिर उसे अपनी टुकडी से जाकर मिलना भी तो है, वही टुकडी जो दंतेवाडा और तमाम इस तरह के आपरेशन को अंजाम देती रही है।
आगे टीवी पर अक्सर दिखते राजनीतिक माहौल की ओर इशारा किया गया है। हरिशंकर परसाई जी के लिखे विकलांग राजनीति के शिकार वाली कहानी अमिताभ बच्चन पर लागू हो रही है और उसी ओर यह कोलाज इशारा कर रहा है।
अमर सिंह के नई पार्टी गठन और यहां वहा मिलते बयानो के मद्देनजर पपीहरा के रूपक मे बोले रे पपीहरा गीत का अंश लिखा गया है।
मुलैमा चूडीबाज से तात्पर्य हाल ही मुलायम सिंह द्वारा अपने विरोधियों पर काबू पाने के लिये राज्यसभा टिकट के ऑफर से है और यह प्रक्रिया एक तरह से विरोधियों की चूडी कसने की तरह थी और यह लाईनें इसी ओर इशारा कर रही हैं।
वहीं डिस्कवरी चैनल पर सूदूर माया संस्कृति के बारे में बताया जा रहा था कि किस तरह से वहां को लोग रहते थे, उनके संकेत क्या थे वह एक दूसरे पर कैसे भरोसा करते थे और उनके जीवनयापन के क्या साधन थे।
लेकिन यहां पैसों की ऐसी माया दिख रही है कि सारा सिस्टम कैसे चल रहा है जनता कैसे रह रही है और कैसे इस तरह की बातों पर जी मर रही है उसको जानने के लिए यदि डिस्कवरी वाले आएं तो फेल हो जाएंगे....इसलिए लिखा है कि डिस्कवरी चैनल फेल हो रहा है दोस्त...
आगे जेल के माहौल का नजारा है जिसमें नक्सली बंद हैं और उनकी खूब तुडाई हो रही है। समय समाप्त हुआ जैसे बातें भी हैं। इसी देस के नागरिकों का किया धरा सब कंकड की तरह है जो पैरों में चुभता जा रहा है।
आगे लिखा गया है कि कैसे गनपॉईंट पर लाईनमैन को अपहृत किया जा रहा है कि चल कर रेलवे लाईन डैमेज करे और उधर उसकी पत्नी मांग में एक सींक से सिंदूर भर रही है कि उसका पति सुरक्षित रहे।
लाल संघर्ष और सिंदूर के रूप में यहां एक तरह की दुविधा और नैराश्य का वर्णन है।
अंत में मुक्तिबोध की फेमस टैगलाईन है जो कह रही है कि आखिर हमारी पॉलिटिक्स किस ओर जा रही है, अपने ही लोगों को मारा जा रहा है, पीटा जा रहा है, लोगों को सरेआम दंतेवाडा सरीखे माहोल में हलाक किया जा रहा है और हम हैं कि कुछ भी करने में लाचार से हैं।
इसलिये कह रहे हैं मुक्तिबोध कि - पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है ?
संजय जी,बैचैन जी और तारकेश्वर जी के कमेंट के बाद लगा कि थोडा डिटेल जरूरी है।
उम्मीद है कोलाज का इतना विश्लेषण पर्याप्त होगा।
- सतीश पंचम
चित्र : दोनों चित्र मेरे गाँव से हैं जिन्हें अबकी जाने पर मैंने खींचे थे। दूसरे नंबर पर चरवाहे वाला चित्र राह चलते- चलते खींचा था......कैमरा ठीक से सेट करने का मौका नहीं मिल पाया और अंदाजिया क्लिक कर दिया था..... जस का तस वही चित्र पेश है।
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सूचना - अपने ब्लॉग पर सर्च इंजिन से ट्रैफिक बढ़ाने हेतु पोस्ट से संबंधित keywords इंग्लिश में लिखना शुरू कर रहा हूँ। अच्छा तो यह होता कि इन शब्दों को मूल पोस्ट में अंग्रेजी में ही लिखता लेकिन इससे पोस्ट में फ्लो नहीं बन पाता और सरसता में बाधा आती। सो, अलग से कीवर्ड लिख रहा हूँ।
ट्रैफिक सर्च इंजिनों से डायवर्ट करने का इस तरह का विचार मेरे मन में कई दिनों से था लेकिन आज रतन सिंह शेखावत जी के ब्लॉग की एक पोस्ट ने मेरी उस सोच को कुरेदना शुरू कर दिया और आज से मैंने यह युक्ति लागू करने का मन बना लिया है।
आशा है बाकि ब्लॉगर जन भी यह युक्ति अपनाएंगे। रतन सिंह शेखावत जी को इस कुरेदनात्मक पोस्ट के लिए धन्यवाद देता हूँ।
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Keyword ref. ( for serach engines) - Colaj,Politics,Indian,Naxalite area,blast,Train accident,lineman,Amar singh, Mulayam singh, gyaneshwari Train Accident, Maoist,Jail,jail scenes, killer,kidnapping,Fish plates,Television News,forest,India,Naxalites,Naxal,Chattisgarh.
13 comments:
मनोहारी चित्र सतीश भाई।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सनननन नहीं......सन्न!!!!!!!!!!!!!
उफ्फ!! कैसा कोलाज! कलेजा निकाल दिया...
उखड़ी फिश प्लेट...नहीं..उखड़ा मन.....
मांग का सेंदूर...लाली..मेरे आँख की..
वो क्या मिटा...मेरा...तेरा...उसका..आत्मविश्वास...लकीरें लकीरे..मिटा..मिटता जा रहा है!!
बस्स!!
इस कोलाज़ को पढ़कर एक वृद्ध की याद आई जो गंगा किनारे, घाट पर बैठा, अकेले.. जाने क्या-क्या बोले जा रहा था ..कुछ लोग उसकी बात का मजा ले रहे थे कुछ उसे पागल समझ रहे थे और मुझे लगा था कि इस आदमी के दिल में कितना दर्द है ...!
@ बेचैन जी,
- इस कोलाज़ को पढ़कर एक वृद्ध की याद आई जो गंगा किनारे, घाट पर बैठा, अकेले.. जाने क्या-क्या बोले जा रहा था
इस तरह के कोलाज का यही मजा होता है. एक तरह का मन्नाद है ये - मन्नाद यानि मन से निकला नाद एक आवाज जो कुछ भी कहीं भी किसी ओर भी मुड़ जाती हैं।
यदि कोई मशीन होती जो जस का तस हमारे मन में आती बातों को नोट करती जाती तो बाद में एक बार उस सब को पढने पर हम लोग खुद ब खुद अचरज में पड जाएंगे कि यह सब क्या है.....न जाने कहां-कहां और क्या-क्या सोच लेता है मन।
यह कोलाज उसी मन और मशीन का एक तरह से लोअर वर्जन है :)
आपकी कोलाज वाली पोस्ट अद्भुत होती हैं. ये भी गज़ब है.
"अपना खयाल रखना गार्नियर.."
वाह!
भाई जी,
ये ऊपर लिखा दस-बारह किलो का धन्यवाद वाला क्षेपक आज ही पढ़ा है। हिसाब रखना शुरू करते हैं अब, वैगन बुक करवा कर एक बार ही ले आयेंगे:)
आप कोलाज एक्स्पर्ट हो गये हैं या पहले से ही हैं?
इस विधा का फ़ायदा आपको मिल रहा है और हमारे दिमाग की लस्सी बन जाती है, सोचना खत्म ही नहीं होता, कितना ही किसी भी दिशा में सोच लो।
सदरू भगत कहां खो गये हैं? कोई फ़ूल वूल तो नहीं खिल रहा है चड्डी पहन के?
क्या आखर कोलाज बाप रे ..फोटो बुलंद है !
संजय जी,
दरअसल आज सुबह पहला कमेंट बडा अजीब सा आया था कि लिंक देते हुए एक ओठ का कमेंट...... कृपया मेरा ब्लॉग देंखें बदन के उभार देखें....लग रहा था जैसे अशोक कुमार आशीर्वाद फिल्म का रैप गीत गा रहे हों...तिल देखो, ताड देखो....खेत और मकान देखो....खडा किसान....खंडवा..मांडवा...अडकपुर खडकपुर....छुक छुक :)
दिमाग भन्ना गया भाई सई कै रिया हूँ....एकदम भन्नाट हो गई मेरे कू.....तबीच ये सोच के मैं वार्निंग बिरनिंग दे डाला। आप बोलो तो अबीच का अबी इसकू हटाके दस बारा किल्लू से सौ दौ सौ ग्राम का कर डालता भाई जी :)
pura ka pura chaakka hi lagate hai aap.
Namashkar
हा हा हा,
सतीश भाई,
और कई ब्लाग्स पर भी देखा है ये कमेंट। खुशकिस्मती से अपन अभी इतने मशहूर और लिक्खाड़ नहीं हुये हैं, नहीं तो हमारे फ़त्तू का तो हर बात पर, चाहे प्यार की हो या तकरार की, एक pet dailogue है, ’एत्थे केड़ी ना है?’
हटाने का कबीईच नईं सोचना, वेट स्साला बढ़ा दो तीस चालीस किलो तक, तिल ताड़ साले भी पछतायें कि किसे न्यौता दे दिया और क्यों दे आये।
थोडा सा कोलाज के अमूर्त तत्वों का खुलासा कर दूं क्योंकि कहीं कहीं लग रहा है कि कुछ ज्यादा ही Abstractism आ गया है पोस्ट में।
यहां शुरूवात में राजबब्बर पर फिल्माए और महेन्द्र कपूर द्वारा गाए गीत से हो रही है जिसके बोल हैं दिल की आरजू थी कोई दिलरूबा मिले जिसका तात्पर्य आगे जाकर खुलता है कि एक अच्छा सा शांति दायक सूकूनदेह रहने लायक देश की इच्छा थी। इसी बीच आजकल अमेरिकन टूरिस्टर वाला ऐड की ओर इशारा किया गया है कि कैसे सारा देश अमेरीकी चादर ओढते जा रहा है।
अभी हाल ही में मुंबई के पवई इलाके मे एक श्वेत विला नामक बिल्डिंग का ऐड देखा जिसमें रहने वाले श्वेत विदेशी मेंम की तस्वीरे हैं। यानि देश अब भी उसी विदेशी मानसिकता से गुजर रहा है।
आगे मैने लिखा है कि अपना ख्याल रखना गारनियर....जो कि टीवी पर आते गार्नियर से प्रेरित है जिसमें पंचलाईन है कि अपना ख्याल रखना। इस पर एक तरह से घर से व्यंग्य और हास्य का पुट मिलाते हुए कहा भदेस शब्दों में बात कहने के लिये शुद्ध गार्नियर न लिख गारनियर लिखा है यानि कि जब घर से विदा हो रहा है कोई तो घर की महिला कहती है अपना खयाल रखना गारनियर। स्माईली ओढाती से तात्पर्य मुस्काती पत्नी से है जो अपने पिता को जाते हो परदेस पिया जाते ही खत लिखना गाने के आलोक में विदा कर रही है।
इसी बिछड़ाव के दौरान तिक्तता भी बढ़ती है कि वह उसे क्यो न ले जा रहा है मसाले की उपमा और पान खाए सरीखा दिल उसी की ओर इशारा कर रहा है।
एक सैनिक की विदाई भी उसी अंदाज में हो रही है, चाय उबल रही है, पत्नी रो रही है और उसके आंसूओं के बूंद सैनिक के दिल में गर्म तवे पर पडे बूंद से सनसना रहे हैं और लुप्त भी हो जा रहे हैं तुरंत। आखिर उसे अपनी टुकडी से जाकर मिलना भी तो है, वही टुकडी जो दंतेवाडा और तमाम इस तरह के आपरेशन को अंजाम देती रही है।
आगे टीवी पर अक्सर दिखते राजनीतिक माहौल की ओर इशारा किया गया है। हरिशंकर परसाई जी के लिके विकलांग राजनीति के शिकार वाली कहानी अमिताभ बच्चन पर लागू हो रही है और उस ओर यह कोलाज इशारा कर रहा है।
अमर सिंह के नई पार्टी गठन और यहां वहा मिलते बयानो के मद्देनजर पपीहरा के रूपक मे बोले रे पपीहरा गीत का अंश लिखा गया है।
वहीं डिस्कवरी चैनल पर सूदूर माया संस्कृति के बारे में बताया जा रहा था कि किस तरह से वहां को लोग रहते थे, उनके संकेत क्या थे वह एक दूसरे पर कैसे भरोसा करते थे और उनके जीवनयापन के क्या साधन थे।
मुलैमा चूडीबाज से तात्पर्य हाल ही मुलायम सिंह द्वारा अपने विरोधियों पर काबू पाने के लिये राज्यसभा टिकट के ऑफर से है और यह प्रक्रिया एक तरह से विरोधियों की चूडी कसने की तरह थी और यह लाईनें इसी ओर इशारा कर रही हैं।
लेकिन यहां पैसों की ऐसी माया दिख रही है कि सारा सिस्टम कैसे चल रहा है जनता कैसे रह रही है और कैसे इस तरह की बातों पर जी मर रही है उसको जानने के लिए यदि डिस्कवरी वाले आएं तो फेल हो जाएंगे....इसलिए लिखा है कि डिस्कवरी चैनल फेल हो रहा है दोस्त...
आगे जेल के माहौल का नजारा है जिसमें नक्सली बंद हैं और उनकी खूब तुडाई हो रही है। समय समाप्त हुआ जैसे बातें भी हैं। इसी देस के नागरिकों का किया धरा सब कंकड की तरह है जो पैरों में चुभता जा रहा है।
आगे लिखा गया है कि कैसे गनपॉईंट पर लाईनमैन को अपहृत किया जा रहा है कि चल कर रेलवे लाईन डैमेज करे और उधर उसकी पत्नी मांग में एक सींक से सिंदूर भर रही है कि उसका पति सुरक्षित रहे।
लाल संघर्ष और सिंदूर के रूप में यहां एक तरह की दुविधा और नैराश्य का वर्णन है।
अंत में मुक्तिबोध की फेमस टैगलाईन है जो कह रही है कि आखिर हमारी पॉलिटिक्स किस ओर जा रही है, अपने ही लोगों को मारा जा रहा है, पीटा जा रहा है, लोगों को सरेआम दंतेवाडा सरीखे माहोल में हलाक किया जा रहा है और हम हैं कि कुछ भी करने में लाचार से हैं।
इसलिये कह रहे हैं मुक्तिबोध कि - पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है ?
उम्मीद है कोलाज का इतना विश्लेषण पर्याप्त होगा।
मुझे यह विश्लेषण पोस्ट के अंत मे कर देना चाहिए था न कर पाया या कहें कि मुझे लगा शायद जरूरत नहीं है। लेकिन संजय जी,बैचैन जी और तारकेश्वर जी के कमेंट के बाद लगा कि थोडा डिटेल जरूरी है।
- सतीश पंचम
बहुत मारा…….सफेद पिशाब…… इस पंक्ति ने दिमाग ही घुमा दिया.....बहुत ही गजब की पोस्ट....
क्या जबरस्त कोलाज बनाया है बॉस, कुछ विज्ञापन अभी तक नहीं देखे हैं लेकिन समझने में कोई दिक्कत नहीं हुई।
एकदम मारू कोलाज कहना चाहिए इसे तो।
………..स्माईली ओढ़ाती पत्नी……।
..विकलांग राजनीति का शिकार………अमिताभ बच्चन…..
.……चलो टाईम हो गया….मिलने का टाईम खतम……..मन में दूसरा लड्डू फूटा।
…नक्सल समस्या पीलापन लिये हुए है……….पिशाब सफेद करवाना पडेगा........साले नक्सली..... …….…कुत्ते की तरह पीटो ..
किस किस को कोट करूं…
समूचा कोलाज ही शानदार है बावजूद इसके कि Abstractism ज्यादा लग रहा है आपको खुद ही।
कोई वान्दा नई, आने चाहिए ऐसे कोलाज कभी कभी।
भाभी जी होती तो ऐसे कोलाज आने की कल्पना कर सकते थे क्या आप कभी?
;)
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