
गाँव जाने के लिये तैयार हो रहा हूँ.... …..नॉस्टॉलिजिया चोंक रहा है……बस अड्डे पर खलासी का चिल्लमचिल्ल………..एक सवारी एक सवारी……रोक के.... रोक के…….चलाsss……ए भाई साईकिल उपर……अरे तनिक गठरी उहां रखिये…..हां किसका किसका बनेगा……अरे बच्चा है तो उसे गोद में लेकर बैठिए…….हां जी आप जाकर बच्चे वाली सीट पर बैठिए…….टिकस लिया है तो बच्चे का लिया है पूरे का नहीं……सीट पर आप बैठ जाईये मां जी…..हाँ…..कहां जाना है………ऐ रिक्शा……अरे तोहरी हरामी क आँख मारौं ……चाँपे चले आव सारे……..ए दाहिने कट के….थोड़ा और……. ए सारेsssss……..
आज मुलैमा क रैली है…..मायावतीया भी कम नहीं है……लई मूरती….लई मूरती मार पाट दिया है लखनऊ को………अरे त रोजगारौ त मील रहा है……लांण रोजगार मिल रहा है……ससुर जा के देख त मालूम पड़ी……अदालती अस्टे क चक्कर में सिल्पकार लोग बदहाल …….. बकि आंबेडकर भी त सिल्पकार……हां…..संविधान…….ए भाई तनिक गाड़ी इस्लो होने दो तब थूको…….हवा ईधरै का है …….
काल सरजू बावन बो दिया……सोनालिका भी ठीक है…..उपज ठीकै है…….…चुल्ली गुरूजी ….. चुल्ली………. चिढ़ौना नाम……एक निबंध…..विज्ञान ने हमारे जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन किया है……..बड़ी मार पड़ी……बताओ…..आमूल तो आमूल ये चूल क्या है…….…..रोक के….. रोक के……उतरना है …….ए भाई सामान आगे करो………आप वहां बईठो……..अरे तो आधे पर ही बैठो भाई……जल्दीऐ पहुंच जाओगे……..काहे जल्दियान हो……सामान पर जोर मत डालिए…..फूटेगा नही….. अरे चिंता मत करो………
बीड़ी छूआ जाएगा….हाथ उधरिये रखिये……कुर्ता बड़ा रजेस खन्ना कट लिहल बा हो……समधियाने जात हऊवा का ……..अरे तोहरी बहिन क……… काहे भीड़ है…….बारात नाराज …….चार चक्का के बजाय दू चक्का ……बडा करेर दहेजा पड़ा……..…..अरे त हां भाई स्वागत सत्कार खूब किया कि………..
का हो नईहरे से…….अरे तबै तोहार भऊजी नाराज……कुल सामान उठा के बिटियन के दई दिया….. सूप…..पिसान…..दउरी…..लूगा……नईहर से एतना लेकर आई हो…….केतना भी हो….पर बिटिया के लिये महतारी मयागर रहती है भाई………..बेटवा लोग के न पूछी ओतना………अरे का बिलाना……..पतोहिया बहुत तबर्रा बोलती है……...रोक के…….रोक के ssss……….
हाँ भाई…….आ जाओ…..उतरिए जल्दी………उतर रहे हैं……कहां हवाई जहाज चला रहे हो……….
- सतीश पंचम
स्थान – वही, जहां पर रहने से नॉस्टॉलिजिया अक्सर चोंकता रहता है और उसी चोंक से बचने जौनपुर की ओर निकल रहा हूँ ।
समय – वही, जब खबर चल रही हो कि यूरोप में हवाई जहाजों की आवाजाही ज्वालामुखी धूएं के कारण ठप्प है और तभी सास अपनी पतोहू से कहे….अरे उपले की आग जरा तेज कर…..काहे धूआँ धूआँ कर रखा है ……नईहर में यही सिखी थी अपने…….
22 comments:
चौंचक ! धाँसू !! गुरू वाह !!!
..एक बार मलिकाइन को ससुराल की कार पर बैठा कर रोडवेज की बस से गोरखपुर से गाँव गया था। ऐसा ही नज़ारा था। उस समय ब्लॉगरी नहीं चल रही थी नहीं तो अवश्य लिखता।
@ …लांण रोजगार मिल रहा है…
हा, हा, हा .... देहात में अभी भी लांण का ऐसा ही परयोग होता है। ...गुड़गाँव, मुम्बई और फिर गोबरपट्टी... कई बार लगा है कि एक हिन्दुस्तान में जाने कितने भरे पड़े हैं !
सच में बसें और रेल गाडि़यां मिनी भारत का स्नैप शाट होती हैं, समाज का और जीवन का हर रंग समेटे हुये।
हमें भी घर की याद आने लगी है, ये पढ़कर।
आभार।
अरे वाह! आप तो एकदमै फोटू खींच के धर दिये...हम भी कभी जब गाँव जाते थे तो अइसा ही कुछ महौल होता था. गरिया लिखने से चूके नहीं, कुछ गालियाँ तो हमारी तरफ़ इतनी पापुलर हैं कि पूछिये मत...देंगे गाली वो भी आप और जी करके...अजीब ही होते हैं इ पुरबिया लोग.
आजकल इ नॉस्टल्जिया बहुत बौरा गया है, जिसको देखो उसी को चोंके पड़ा है...कुछ इलाज बताइये इसका...और नहीं तो हमारी तरफ से दू-एक ठो गालिये दे दीजिये.
ये छायाचित्र आपने लिये हैं क्या????
@ मुक्ति जी,
जी हाँ, ये चित्र मैंने ही लिए हैं। पिछली बार की यात्रा के चित्र हैं।
नॉस्टॉल्जिया का इलाज ?
मुश्किल लग रहा है :)
और रही गालियों की बात तो वह तो एक तरह से समाज के भीतर पनपे बहुत सारे आग्रहों, विषयों और सम्वेदनाओं का एक प्रतीक है जो गाहे बगाहे हर समाज में और हर समय रहता आया है और कभी कभी तो यह भड़ास निकालने का सेफ्टी वाल्व सा लगता है( इसकी वजह से बात मारा मारी तक बढ़ जाती है यह भी सच है :)
बहुत बढ़िया..बहुत दिन बाद सबेर अइसन भइ. एतना बढ़िया लिखे हय~ कि का कही. मन भरि ग.~
का भाई एकदम चोकियायिये गए हैं, पूरा जौनपुर भर दिए हैं ई पोस्ट में!
रत्नेश त्रिपाठी
लांण रोजगार मिल रहा है…… ha! ha! ha!
Ek to Drevar ko laukai kam deta hai. uper se gadi chalata hai jaise havai jahaj udha raho babat pur havai adde se.
Kaccha aam aur Jafarabad Ki tadi bhai wah! ab to mujhe bhi yad aane laga.
जफराबाद की ताड़ी के बारे मे नई जानकारी मिली
यानि जमइथा के खरबूजों ( मनोज मिश्र जी) के पोस्ट के बाद अब जफराबाद की ताड़ी पर जल्द कोई पोस्ट आने वाली है :)
ताड़ी पोस्ट का इंतजार है.
होए... जाओ बढ़ा के !
चौंचक ! धाँसू !! गुरू वाह !!!
भैया हमें..... यह तो... समझाओ ....
ये.. सब... है... क्या ?
क्या करें समझ से जरा ऐसे वैसे ही हैं.
@ दीपक गर्ग जी,
चौंचक ! धाँसू !! गुरू वाह !!!
भैया हमें..... यह तो... समझाओ ....
ये.. सब... है... क्या ?
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दीपक जी यह पोस्ट गाँव जाते समय बस में यात्रियों के बीच होने वाली बातचीत का शब्द चित्रण है.....इसमें कन्डक्टर की बातचीत का लहजा, उसके साथ सीट आदि के लिये होती नोंक झोंक, बस में यात्रियों की बातचीत में राजनीति का पुट, किसी स्कूली का निबंध पर मजाकिया अनुभव आदि सभी का थोड़ा थोड़ा अंश है।
इसी में एक चित्रण यह भी है ( मेरी बनारस यात्रा के दौरान घटित) कि कोई महिला अपने मायके से आटा, गेहूँ, टोकरी या ऐसी ही घरेलू चीजें लेकर बस में चढ़ती है और उसके साथ मायके के इतने सारे घरेलू सामान को देख सहयात्री मजाक भी करते हैं कि इसीलिये तेरी भौजाई तेरी मां से झगड़ती होगी कि सारा सामान उठा कर मेरी ननद को दे दे रहे हैं :)
इस तरह की बातें अक्सर यात्रा करते समय हमारे आस पास घटित होती रहती हैं और उसी को लेकर लिखा गया है यह कोलाज।
वाह भइया, एकदम बनारसी बोली में आ गये हैं,चांपे रहिये देखा जायेगा ..और इ जफराबाद की ताड़ी मैंने तो कभी ना सुनी???
जौनपुर की इमरती की चर्चा भी करें ।
बहुत प्रभावित बन्धु आपकी लेखन और देखन क्षमता से!
बहुत ही प्रभावित!
गजब गजब गजब!!
बीड़ी जाने कहाँ से महक गया..पलट कर देखता हूँ कोई नऊ..पोस्ट में से महका होगा..क्या रियल चित्र खींचा है, वाह!!
भैया लोग उ का है की जाफराबाद ठहरी हमरी ससुराल। अउर ससुराल मैं तो पता है की जरा ध्यान देवयको पडत है। लेकिन कुछ हमरे साले साहेब लोग हमको ले के पंहुंच गए जाफराबाद बाज़ार के अउर आगे, ससुरा पता चला की इ तो ताड़ी क खान है।
aur hamne daba ke tadi pi , aur ghar आने के बाद तो बस पूछिए मत , घरवाली अउर सासु माँ तो नो जौनपुरिया।
गजब कोलाज है! जय हो टाइप!
bahut hi shi chitran kiya hai hmare asli bhart ka .aur isi me jeevan jeevant hai .abhi abhi phli bar lakhnu dekha aur us par ye apka kolaj man ke tar jhnjhna uthe ham sab bhi usi ka hissa jo hai?
व्हाईट हॉउस में यह यू पी की बस अच्छी लगी ! शुभकामनायें सतीश जी !
"समय – वही, जब खबर चल रही हो कि यूरोप में हवाई जहाजों की आवाजाही ज्वालामुखी धूएं के कारण ठप्प है और तभी सास अपनी पतोहू से कहे….अरे उपले की आग जरा तेज कर…..काहे धूआँ धूआँ कर रखा है ……नईहर में यही सिखी थी अपने……."
आज का ’समय’ एकदम सामयिक और बढिया तो लिखते ही है आप..
बहुत अच्छा लिखते हो जी । मेरा ब्लॉग: मिनिस्टर का लड़का फ़ैल हो गया । क्या वह उसे गोली मार देगा । पूरी कहानी पढ़ें और कमेन्ट भी करें
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