ऐ छू छा मत करो । चलो लाइन से पांत मे बैठो । ढेर चिल्ल पों मत करो । सब कोई को मिलेगा । परोसने वाला लवंडा लोग एक हाथ मे परात बाल्टी उठा लो । दाल वाली बाल्टी उधर है । कल्छूल देखना परोसते टाईम पत्तल से छू न जाए । जाने कौन जात का भोजनिहार हो ।
ऐ उधर कहाँ। उधर मत जाओ जनाना असथान है । जहाँ साड़ी फाडी , लूगा बेलाऊज़ देखे की उधर ही ई लवंडा लोग को सब्जी कचौडी दीखेगा।
ये राम्छारवाका लड़का एकदम लम्बरी है । बार - बार पूडी बेलने वालियनके पास जायेगा । कहेगा कढाई ठंडी हो रही है । जल्दी -जल्दी बेलीये । उसको पुडी पर से हटाओ। बोलो सब्जी बांटे। हटाओ उसको ।
ऐ , वो रामदवरका लड़का है न । क्या परोस रहा है ? खीर? ध्यान देना होगा उसपे। कहीं खीर बांटते -बांटते बाल्टी समेत अपने घर की ओरन चल दे।
ऐ , ये गाना कौन बजाया देख रहे हैं , मारनी करनी है, तेरही है, फ़िर भी गाना बजा रहे हैं, लाज सरम नहीं है, बजा रहे हैं गोलमाल- गोलमाल।
एं, क्या कहा ? रिंगटोन है । बोलो चुप्पा लेवल पर रहे। अच्छा नही लगता इस तरह टाईम कुटाईम बे बात का बजने लगे। बता देते हैं हाँ, चाहे आदमी हो की मशीन।
और वो कौन खड़ा है कुँए के जगत के पास। हरदास है क्या ?
अभी खाने मे मीन मेख निकालेगा इसमे नमक कम है अ उसमें तीखा तेज । जनम का भिखमंगा है, लेकिन बात बोलेगा जैसे रोज पकवान छोड़ कुछ चिचोरता ही नहीं । अरे उस हरदसवा को जगह देखकर खिला दो कहीं बैठाकर, नही तो इस बीस करेगा और हजार भेद बतायेगा ।
अरे वो क्या बोलता है जतना का लड़का - कि मुंह देखकर खाना परोस रहे हैं ? कहता है अपने परिवार के आदमी को ज्यादे परोसते हैं और दूसरे परिवार के बच्चे तक को कहते हैं - खा लो, जरुरत होगी तो फिर मांगना । ऐसा क्यो, ये मांगने वाली बात क्यो कही ? क्या वह लोग मांगने वाले लगते है। क्यो बेबात की बात बोलते हो। बच्चा लोगन को कम ही परोसा जाता है, भोजन भेस्ट नहीँ जाना चाहिये, इसलिये. तुम लोग भी कौआ कान ले उड़ा वाली बात बोलते हो । जाओ नई पांत बैठ रही है, दौड़ो।
अँय क्या कहा टनमन यादव मर गये चलो एक और तेरहवें का इंतजाम हुआ । लंबरदार से कहो बांस-ओस कटवाये। अभी खा ओ कर आ रहा हूं :)
- सतीश पंचम
( यह पोस्ट जौनपुर के एक कैफे से कर रहा हूँ, पता नहीं सही पहुँचता भी है की नहीं, कहीं रास्ते मे ही पूडी कचौडी न खाने लग जाए : )
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16 comments:
बहुत सही गुरु ....मजेदार
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सही पहुंच गई आपकी पोस्ट. मजा आगया इस तेरहीं भोज के आंखो देखे विवरण मे तो. :)
यूं लग रहा है राजू श्रिवास्तव को टी.वी. पर देख रहे हों.
बहुत मजेदार.
रामराम और गणतंत्र दिवस की बधाई.
गजब लिखा है।
घुघूती बासूती
सतीश जी,
जौनपुर से प्रयाग आना कब होगा? आपने जो नम्बर दिया वह सो रहा है।
अच्छी पोस्ट।
सरदी में बुढ़वन ढेर टपकते हैं। मौसम तेरही का है!
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
बहुत अच्छा.....गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
बड़ी पैनी नज़ए रखते हो, गुरु !
जानदार कमेन्ट्री कैफे जौनपुर से...का खीर की बाल्टि लिए कैफे ही चले आये?
ऐ , ये गाना कौन बजाया देख रहे हैं , मारनी करनी है, तेरही है, फ़िर भी गाना बजा रहे हैं, ...ई गाना था कौन सा भाई??
मजा आ गया..एकदमे लगा कि पंगत में बैठे हैं. :)
आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
पंगत भी "लाइव" होने लगी देखिये.........हम ना कहते थे की भारत भी अब अडवांस हो गया है.
यह भी खूब रही ....
Bahut khoob...!!
___________________________________
युवा शक्ति को समर्पित ब्लॉग http://yuva-jagat.blogspot.com/ पर आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??
ज़रूर पढ़ें: हिन्द-युग्म: आनन्द बक्षी पर विशेष लेख
वाह ! सही!!!!
पूरा परिदृश्य आंखों के सामने जीवंत हो उठा......लाजवाब लिखा है आपने ! लाजवाब व्यंग्य(सत्य)....
चाहे किसी का जवान बेटा मरे या बूढा......लोगों को तो बस भोज और उसके विविध व्यंजनों से मतलब है.
Excellent description!!
चकाचक!
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