
चाय की दुकान पर अन्य साथी मास्टरों का गुट जमा देखकर मास्टर दयाराम ने केदारनाथजी से कहा- चलो उस दुकान चलते है, देख रहे हो यहाँ तो जमघट लगा है.....न खुद चाय पियेंगे न दूसरों को पीने देंगे....जो खुद पियो तो इनको भी पिलाओ....। केदारनाथ भी इशारा समझ गये कि ज्यादा खर्चा नहीं करना चाहते मास्टर दयाराम, सो चल पडे नीचे मूड़ी करके मानो उन्होंने इन प्राईमरी के मास्टरों को देखा ही नही है और किसी काम के बारे में कुछ सोचते हुए जा रहे है। बगल में ही मास्टर दयाराम इस तरह चल रहे थे जैसे कोई गंभीर बात सोच रहे हैं और एकांत पसंद हैं। चलते-चलते कुछ दूरी पर शंकर चायवाले की गुमटी आ गई।
और बताओ दयारामजी...क्या हालचाल है - मास्टर केदारनाथ ने कच्ची मिट्टी के बने चबूतरे पर बैठते हुए कहा।
हाल क्या कहें, बस ये कहो कि आजकल रोज टीवी पर मास्टरमाईंण्डवा देखकर दिमाग घूम जाता है।
मास्टरमाईंण्ड ? जरा खुल कर बताओ भाई....।
अरे बताने लायक तो कुछ नहीं है...बस यूं समझिये कि हम प्राईमरी के मास्टरों को रोज टीवी पर गरियाया जाता है रेरी मारकर बुलाया जाता है। कहीं कोई पकडा गया तो कहते है मास्टरमाईंण्ड यही है इस बम के पीछे.....मास्टर माईंण्ड को पकडने के लिये टीमें बनी हैं। एक टीम डिल्ली गई है तो दूसरी कलकतवा गई है तो कोई पंपापुर....... अब बताओ कहां कहां ससूर लोग ढूंढ रहे हैं मास्टरमाईंण्ड को।
लेकिन ये कैसे मान लिया तुमने की वो मास्टरमाईंण्ड शब्द प्राईमरी के मास्टर लोगों को ही कहा जा रहा है - केदारजी ने कुछ माथे पर बल लाते हुए पुछा।
क्यों नही- कभी तुमने सुना है कि कोई सेकंडरी का मास्टर है......जब लोग सेकंडरी को पढाते है तो वो शिक्षक कहलाते है और आगे कक्षा वालों को पढाते हैं तो उन्हें टीचर कहते हैं और आगे बढो तो लेक्चरर, प्रोफेसर.....रीडर......कहाँ तक कहूँ......आप तो खुदै समझदार हैं। केदारनाथजी ने ऐसे सिर हिलाया - जैसे कह रहे हों बस अब कुछ मत कहो मैं समझ गया हूँ ।
तब तक एक आठ-दस साल का लडका कुल्हड में चाय लेकर आ गया.....। चाय का कुल्हड कुछ कच्चा सा रह गया था। एक तरफ चाय ने कुल्हड की बाहरी दीवार गीली कर दी थी, इधर इन लोगों की बातचीत जारी थी....।
मैं तो कहता हूँ एक प्रस्ताव लाया जाय अबकी बार प्राईमरी मास्टरों की मीटींग में.....और कहा जाय कि सभी न्यूज चैनल आज से कोई भी धमाका होने के बाद मास्टर माईंण्ड शब्द का ईस्तेमाल नहीं करेंगे क्योंकि एक तो पहले ही मास्टर लोगों का माईंण्ड प्राईमरी के बच्चे चर जाते हैं और जो माईंड बचा-खुचा रहता है उसे घर जाते है तो पत्नी चरती है कि कुछ टिउसन उसन करिये.....ऐसा कब तक चलेगा......। क्लास में प्रिंसिपल अलग कहते हैं कि मास्टरजी अपनी क्लास को माईंण्ड करिये, अब मास्टर ही तो है कहाँ तक माईंण्ड करें....उपर से ये न्यूज चैनल वाले रट लगाये रहते हैं मास्टर माईंण्ड - मास्टर माईंण्ड।
दयारामजी ने कहा - ये आप ठीक कह रहे हैं.....अबकी मिटींग में यह प्रस्ताव पास होना ही चाहिये।
तबतक कच्चे कुल्हड से चाय की बूंदे एक-एक कर रिसने लगीं, मास्टर दयाराम की धोती पर एक दो बूंदें गिरते ही उन्हें महसूस हुआ चाय गर्म है। फट् से चाय के कुल्हड को दार्शनिक अंदाज मे देखते हुए बोले - आप जानते हो केदारनाथजी कि मैं यहाँ उस दुकान को छोड इस दुकान पर क्यों आया हूँ ?
नहीं।
वो इसलिये कि मैं इस दुकान की चाय पसंद करता हूँ और वो आज साबित हो गया है।
कैसे ?
वो ऐसे कि जिस मिट्टी से ये कुल्हड बना है उस मिट्टी ने अपने में काफी छोटे-छोटे रंध्र बना कर रखा, और जब कुम्हार ने इस कुल्हड को आग में पकाया, उस आग ने भी इन छोटे-छोटे कुल्हड के छेदों को बनाये रखा.........और जब चाय बनी तो उस पानी ने जिसमें की चाय बनी , उसने भी मुझसे मिलने के लिये रास्ता इस कुल्हड में खोज ही लिया।
तो ?
तो ये कि आग, पानी, मिट्टी जब सब हमसे मिलना ही चाह रहे हैं तो हम कब तक बचे रहते, हम भी यहीं आ गये और अब देखो धोती पर चाय की बूंदें कैसे पसर कर आराम कर रही है जैसे उन्हे आज मुझसे मिलकर शांति मिली है।
केदारजी मास्टर दयाराम के इस तर्क से काफी प्रभावित लगे कि आग-पानी और मिट्टी इनको चाय से मिलाने के लिये एक हो गये......अभी बातचीत चल ही रही थी कि शंकर के रेडियो पर शाहरूख खान के एक फिल्म ओम शांति ओम का प्रचार आया
- अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने मे लग जाती है।
मास्टर दयाराम अब भी अपनी कुल्हड को देख मगन हो रहे थे और न जाने क्या-क्या सोचे जा रहे थे- आग....पानी.....मिट्टी....कायनात...मिलन...... उधर मास्टर केदारनाथ सोच रहे थे कि प्रस्ताव का शीर्षक रखा जायगा - मास्टर माईंण्ड ।
- सतीश पंचम
11 comments:
गजब मास्टर माईन्ड पोस्ट...आग पानी मिट्टी वाली..कितनी गहरी बात आप कर गये, क्या आप जानते हैं??
वाजिब है मास्टर जी का दर्द। आपने कैसे पकड़ लिया?
sahi he..
maja aa gaya ji..master or mind ka kya sahi milan kiya hai aapne!
लगता है मास्टर जी को मास्टरमाइण्ड पर सोचने के लिये बहुत माइण्ड है और समय भी।
यह ऑबजर्वेशन सही लगा कि मास्टर माने प्राइमरी (देसी) स्कूल का अध्यापक। अन्यथा, हेड-दर्जी भी मास्टर होता है!
इन सब के बीच मजेदार बात ये है की ॐ शान्ति ॐ का ये दय्लोग एक famous किताब अल्केमिस्ट से बड़े शानदार तरीके से उठाया गया है.....
अनुरागजी मैं यह Alchemist वाला डॉयलॉग किताब का उदाहरण देते हुए पहले मास्टर दयाराम के मुंह से ही कहलवाना चाहता था लेकिन om shanti om की FAMOUS tag और प्रचलित डॉयलॉग के कारण ही इसे आसानी से समझने के लिये रेडियो द्वारा कहलवाया।
भाई सतीश पंचम जी , जबरदस्त लेखन है ! मजा आ गया !
इतने सहज व्यंगात्मक लहजे में इतनी गहरी बात कह देते हैं आप ?
भाई प्रणाम आपको !
कईसन कईसन मास्टर माईंडवा होते जा रहे हैं.. हमको तो लगता है कि ऊ जमाना दूर नईखे जब लोग-बाग मास्टरवों में अलग अलग टाईप के मास्टर खोज लेंगे.. :)
भाई आप का लेख तो बहुत ही मजे दार हे लेकिन हमारी टिपण्णी कहां टपक गई दिख नही रही...
चलिये दुवारा से आप का धन्यवाद
सतीश जी !
मजा आ गया .........
गंभीर से गंभीर बातों को भी व्यंग के बहने आपने इतनी सहजता से कह दिया ?
बधाई आपको!
"तुमने सुना है कि कोई सेकंडरी का मास्टर है......जब लोग सेकंडरी को पढाते है तो वो शिक्षक कहलाते है और आगे कक्षा वालों को पढाते हैं तो उन्हें टीचर कहते हैं और आगे बढो तो लेक्चरर, प्रोफेसर.....रीडर......कहाँ तक कहूँ......आप तो खुदै समझदार हैं।"
यह शिक्षा व्यवस्था का असली चेहरा है ।
ज्ञानदत्त जी ने सही फ़रमाया है .....दर्जी (हेड-दर्जी) को भी मास्टर कहते हैं।
समय निकाल कर मास्टरों के हाल चाल यंहा लेते रहिएगा ...http://primarykamaster.blogspot.com/
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