
कल देखा सडक के किनारे एक बैनर लगा था जिसके उपर किसी नेता के पिताजी की मृत्यु पर शोक जताया गया था, शोक जताने वालों मे इलाके के कार्पोरेटर से लेकर तमाम छोटे -छोटे छुटभैयों की तस्वीरे थी, वो केबल वाला भी था जो इलाके में केबल कनेक्शन देने और काटने में बडी फुर्ती दिखाता था, इलाके का दूधवाला भी था मुछों की मुस्कान बिखेरता, एक और शख्स जिसे नाम और काम से तो नहीं जानता पर उसे एक बार चंदा मांगने को लेकर हुए एक झगडे में कहीं देखा था, उस वक्त वो चंदा न देने वाले को गाली दे रहा था और कुछ उसके साथी उसे छोड.....जाने दे कहकर अलग हटा कर ले जा रहे थे...लेकिन वो था कि माँ....बहन एक करने पर तुला था। ऐसे ही तमाम लोगों की तस्वीरें थी। और हाँ विशेष बात तो बताना भूल गया....वह है उस बैनर का रंग, आजकल जहाँ तडक भडक वाले बैनर लगाने का रिवाज है, वहीं यह शोक संदेश वाला बैनर श्वेत-श्याम यानि सफेद-काले में बना था, ईसी बहाने मुझे पता चला कि शोक संदेश वाले बैनर ऐसे होते हैं। खैर, बात हो रही थी नेता के पिताजी की, देखा तो उन पिताजी को भी सफेद-काले में छापा था, सिर पर देहाती पगडी, आँखों पर काला चश्मा.....लगा कि आज ये नेता पिता को काले-सफेद में रंगकर यह इतने सारे परपुत्र शायद बता देना चाहते हैं कि आपने एक पुत्र जन्मा लेकिन जाने किस तरह कि आज तक आपका वह नेता पुत्र काला-सफेद कर रहा है.....बस यूँ समझिये कि हम आपको उसी रंग में रंगकर श्रध्दांजली देना चाहते है। उधर बैनर लगवाते समय केबल वाला सोच रहा होगा.....आप मेरे पिता क्यो न हुए.....दूसरे इलाके भी मेरे कब्जे में होते.......दूधवाला सोचता......आप महान हैं जो ऐसा बेटा पैदा किया......हम सब उनकी ही अनुकम्पा पर जीवित है.........पार्टी का कोई कार्यक्रम हो....चाय- दूध का ऑर्डर मेरे यहाँ ही देते हैं, बिल जरूर डबल-टिबल बनवाते है.......पार्टी फंड को भी खर्च करने का कोई रास्ता चाहिये ही न, वह रस्ता मेरे यहाँ से ले जानेवाले ये नेता आपके ही पुत्र हैं.... MBA वाले भी आजकल हम जैसे चायवाले दूधवालों पर रिसर्च कर रहे हैं, एसे मे मैं भी कुछ Management के फंडे जानता हूँ.....जैसे किसी भी समस्या पर एक फंडा है कि Find the Root Cause of the problem, सो मैने जाना कि...आप न होते तो आपके ये नेता बेटे न होते और ये आपके बेटा न होते तो वह खर्च और बिल का रस्ता न होता.......सो मूल रूप से आप ही Root cause हैं, इस लिहाज से हम लोगों की श्रध्दांजली स्वीकार करें। ईधर मैं सोच मे पड गया था कि क्या कभी इन लोगों ने अपने पिता के मरने पर कभी शोक जताने के लिये इस तरह सार्वजनिक रूप से बैनर लगाया था.....शायद नहीं , करेंगे भी नहीं, क्योंकि ईनका बस चले तो खुद का बाप बदलने में भी पीछे नहीं रहेंगे, शोक करने की तो बाद की बात है।
5 comments:
वाह, शोक का अर्थशास्त्र रोचक है! :)
वाकई, लोग वैसे भी बहुत हद तक गिर चुके है, और राजनीति में बिना गिरे कम ही लोग पहुँचे हैं। यहॉं तो लोगों की सहानुभूति बटोरने के लिए जिंदा बाप पर शोक सभा आयोजित कर लेते हैं। कईयों की राजनीति तो बाप के मरने के बाद और उनके नाम के सहारे ही चमकी है।
किसी की त्रासदी भी व्यापार है मित्र .....
ईनका बस चले तो खुद का बाप बदलने में भी पीछे नहीं रहेंगे, शोक करने की तो बाद की बात है।
bahut satik likha aapane !
सतीश जी बहुत अच्छा लिखा आप ने , अब चोर उच्चके मरेगे तो अफ़्फ़्सोस करने भी तो उसी बिरादरी के लोग आये गे
धन्यवाद
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