

हीरामन अपनी चार साल पुरानी टप्पर गाड़ी मे न्युक्लीअर डील को लिए चले आ रहे हैं , रस्ते मे कोई गाँववाला मिल जाता है और पूछता है - कहाँ जा रहे हो भाई। हीरामन ने कहा - छ्त्तापूर - पचीरा । ई छ्त्तापुर - पचीरा कहाँ पड़ता है । अरे कहीं भी पड़े , तुम्हे उससे क्या, इस गाँव के लोग बहुत सवाल - जवाब करते हैं, देहाती भुच्च कहीं के - हिरामन ने कुढ़ते हुए कहा ।
वैसे आप लोगों को बता दूँ की हिरामन को सभी लोग हीरे से तुलना करते हैं कि अरे ये आदमी तो हिरा है हिरा , देखा नहीं , जब बाघ को यहाँ से वहां ले जाने कि बारी आई तो सभी गाडीवानों ने इनकार कर दिया कि हम नहीं ले जायेंगे बाघ - फाग , तब यही हीरामन था जिसने आगे बढ़ कर सभी गाडीवानों कि लाज रख ली, आज भी लोग उन्हें हीरे जैसे मन वाला कहते हैं।
हाँ तो हीरामन जी नयूक्लीअर डील कि लदनी लादे आगे बढे, रास्ते मे बैलों को यानी जनता को रह रह कर तेज चलने के लिए उनकी पूँछ के नीचे पेईना (छड़ी) से कोंच लगा देते या खोद- खाद देते जिससे बैल हरहराकर कुछ कदम तेज चलते, लेकिन महंगाई की मार झेल रहे बैल आख़िर कितना तेज चले ? खैर अभी थोड़ा आगे बढे थे कि देखा एक जगह भीड़ लगी है - एक आदमी जो कोई नेता- फेता लग रहा था , किसी मकान की छत पर चढा है और कुछ बक बक कर रहा है, उसे देखने वालों की भीड़ लगी है और उस भीड़ की वजह से रास्ता जाम है, अब हीरामन टप्पर गाड़ी निकाले तो कैसे निकाले , उस आदमी से कहा - "अरे भाई छत से उतर क्यों नहीं जाते, देखते नहीं गाड़ी रुकी हुई है"।
उस आदमी ने कहा - "अरे छत से क्यों उतरूं, क्या अपनी टप्पर गाडी छत के उपर से ले जाओगे" ? खैर जैसे तैसे लोगों ने ही रास्ता छोडा और टप्पर गाडी आगे बढी । हीरामन मन में सोचने लगे - वह आदमीबडा लटपटीया मालूम पडता था, मुझे पहले ही उस आदमी से बात नहीं करनी चाहिए थी, सीधे लोगों से कहा होता तो वो खुद ही रास्ता छोड देते।
इधर बैल फिर अपनी पुरानी चाल पर चलने लगे, हीरामन ने उन्हें अब छडी से मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि टप्पर गाडी में पीछे से आवाज आई - मारो मत। धीरे धीरे चलने दो, इतनी जल्दी क्या है। हीरामन सोचने लगे कि मैं अपने बैलों को मारता हूं तो इस न्यूक्लीयर डील को तकलीफ होती है, कितना भला सोचती है ये डील। और सचमुच ये बैल भी कितना तेज चलें, पहले से ही महंगाई का बोझ ढो रहे हैं, जातिवाद, संप्रदायवाद, उधारवाद और भी न जाने कितने सारे वाद-विवाद झेल रहे हैं मेरे ये बैल। इस डील के जरिए ये सभी प्रकार के वाद एक झटके में दूर हो जाएंगे। और फिर मुझे लालटेन लेकर चलना भी नहीं पडेगा, सस्ती न्यूक्लीयर उर्जा मिलने से मेरी टप्पर गाडी में भी बल्ब लग जाएगा। इधर रास्ते में हीरामन के साथी लालमोहर और पलटदास (पलटा) भी मिल गए। हीरामन के दोस्तों के नाम फनीश्वरनाथ रेणूजी ने जाने क्या सोचकर लालमोहर और पलटा रख दिया था, कि आज भी उस नाम का असर हैकि लालमोहर अपने नाम के अनुसार लाल रंग को अच्छा समझता है, कम्यूनिस्टों सी बातें करता है। और पलटदास,वो भी कुछ कम नहीं, आज इधर तो कल उधर, पलटना जारी रखता है, जाने कौन जरूरत पड जाय।तभी तो हीरामन एक जगह कहता भी है - जियो पलटदास.......जियो।
इधर न्यूक्लीयर डील को देख लालमोहर को शंका हुई, पूछा - इस डील की लदनी लादे कहां से चले आ रहे हो,इसके आने से हमारे उन्मुक्त स्वतंत्रता में बाधा होगी, हम ठीक से गा नही पाएंगे कि - उड उड बैठी ई दुकनिया, उड उड बैठी उ दुकनिया......जब हम गाएंगे तो ये डील कहेगी कि उसी को देखकर ये लोग गा रहे हैं, बोली ठोली बोल रहे हैं......ना ना बाबा नाहम तो ये डील नहीं मानेंगे, जिंदगी भर बोली-ठोली कौन सुने..... इसे तुम वहीं छोड आओ जहां से लाए हो। तब हीरामन लालमोहर को समझाने लगे, देखो इसके फलां फलां फायदे हैं, और सबसे बढकर ये हमें पास भी तोदे रही है। पास का नाम सुनकर लालमोहर और पलटा थोडा सतर्क हो गए, पूछा - पास...कैसा पास ? हीरामन ने कहा - "अरे कोई अईसा वईसा अठनिया दर्जा वाला पास नहीं, न्यूक्लीयर दर्जा वाला पास"। लालमोहर दर्जा का नाम सुनते ही उखड गया, लाल - लाल होते बोला - दर्जा की बात करते हो, यहां हमसभी को एक समान दर्जा की बात करते हैं और तुम एक और दर्जा बढाने की बात करते हो, लानत है तुमपर। अभी ये बातें हो रही थीं कि लालमोहर ने देखा - पलटा कहीं नजर नहीं आ रहा है।अरे ये क्या, पलटा तो उधर डील की चरणसेवा कर रहा है , जाने इस डील ने कौन सा मंत्र मार दिया है। लालमोहर ने पलटा की बांह पकड कर झकझोरते हुए कहा - तू यार हमेशा यही करता है, जरा सा कुछ हुआ नहीं कि पट से हाथ जोड चरणसेवा करने लगता है, और आज तू सेवा कर रहा है न्यूक्लीयर डील की,तेरा तो उन लोगों जैसा हाल है कि - आज न्यूक्लीयर टेस्ट किया, कल वहीं जाकर उस जमीन से माथे पर तिलक लगा लिया, पता चला अगले दिन माथे पर फोडा हो गया। इधर पलटा मन ही मन सोच रहा था - तूम क्या जानों मैं क्यूं चरणसेवा कर रहा हूं , मेरे घर पर माया का कब्जा हो गया है, मेरे बैल पगहा तोड कर भागे जा रहे है, ले दे कर एक ही सहारा था, सो मायामोह में ढहाया जा रहा है, अब तुम ही बताओ लालमोहर कि, मै कुछ गलत कर रहा हूं ? लालमोहर क्या बोले, हीरामन को ही बोलना पडा - अब पलटा तुम एक काम करो, जाकर जरा अपने जान पहचान वाले उस पनवाडी से अपने हरे हरे पान ले आओ, देखते हैं, ई डिलिया को कौन रोकता है।और देखना उस लहसनवा को भी लेते आना। लालमोहर बोला - कौन लहसनवा, उ दलबदलू ?
हां हां वही - पलटा तपाक से बोला। इधर ये बातचीत चल ही रही थी कि- लहसनवा खुद ही बोल पडा - ऐ मालिक......लालमोहर बोला - चोप....तू कहां चला आ रहा है बडे लोगों के बीच में। ऐक जोरदार रसीद कर दूंगा, तबियत हरी हो जाएगी।
लहसनवा बोला - तबियत हरी हो जाए तो होने दो हरी ....... हम तो हैं ही हरित प्रदेश वाले।तब तक पलटा हरे हरे पान ले आया। पान खाकर हीरामन ने देखा - ई हमरे सफेद कुर्ता पर लाल दाग कैसे लग गया, इसके पहले तो कभी नहीं लगा था।
"इसके पहले तूमने कभी लाल पान भी तो नहीं खाया था" - लालमोहर ने हंसते हुए कहा।
तभी लालमोहर ने देखा न्यूक्लीयर डील उन चारों की ओर देख रही है। लालमोहर ने चहकते हुए पलटा से कहा - "देख रहे हो कैसे देख रही है" ।
"कौन ?"
"अरे वही".
"किसको ?"
"और किसको ?......उसे मालूम पड गया है कि मेरा पावर हीरामन से ज्यादा है"।
इधर लहसनवा झोला झक्कड उठाने की प्रैक्टिस कर रहा था क्योंकि अक्सर इस तरह की डील के बाद झोला वगैरह वही उठाता था, उधर हीरामन पलटा के हरे पान चबा रहा था, लाल छींटे अब भी पड रहे थे, तभी सब की नजर सामने चल रही नौटंकी मंच पर एक साथ पडी। मंच पर न्यूक्लीयर डील नाच गा रही थी, बोल थे -पान खाये सईंया हमार..... मलमल के कुर्ते पर छींट लाल लाल....... मंच के उपर लगे झालरों के उपर बडे - बडे अक्षरों में लिखा था - 'द ग्रेट भारत नौटंकी कंपनी' ।
-सतीश पंचम
11 comments:
अरे, बड़ा सशक्त लेखन। रेणुजी का जमाना याद आ गया।
ये पोस्ट लेखन जिन्नाबाघ (जिन्दाबाद)!
बहुत ही शानदार लेखन ! जितनी तारीफ की जाये वो कम पडेगी !
और मन को मोहने वाले ... लाल लाल ... वाह भाई साहब !
अति आनंद भया ! धन्यवाद !
बहुत अच्छा लिखे अहा भाय.बतावा कौने स्कूले मां पढ़े रहा.हमहूं जाय के कुछ दिन के ताईं एडमीसन लै लेई.तोहेरा जेतना न सही,कुछ तो लिखै आइन जाए. जगदीश त्रिपाठी
अच्छे लेखन के लिए बधाई
भाई आप की यह ** द ग्रेट भारत नौटंकी कंपनी** बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद एक अच्छे ओर मसाले दार लेख के लिये
रेनू जी मेरे पसंदीदा लेखको में से रहे है ओर तीसरी कसम मेरी प्रिय फिल्मो में से एक.....शायद शैलेंदर के इससे जुड़े रहने के कारण भी ,आपने जिस तरह से इन चरित्रों को पोटरे किया है ...काबिले तारीफ है ,मै आपकी कलम की जादू में गिरफ्त होने लगा हूँ.....
bhut badhiya likha hai.
क्या बात है जी....
बढ़िया कैरेक्टर ढूंढ के लाए हो जी!
waah...bahut behtareen likha hai. lajawaab hai aapki kalam ka jadu.
आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आया . कई लेख पढ़े .अपनी जमीन की महक के साथ शैली , कथ्य , शिल्प सभी ने मन मोह लिया . आनंद ही आनंद .
जब जगदीश त्रिपाठी क बताया त रचि के हमहूँ क बताय देह्या भाय की कौने स्कूल म पढय ग रह्या :).
जय हो! कल को कोई आरोप लगा सकता है कि सतीश पंचम के लेखन में रेणु जी की झलक दिखती है। :)
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